MIDTERM SST XTH PRACTICE PAPER

खण्ड क: इतिहास

1. उचित विकल्प की सहायता से रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए।
जेम्स वॉट ने B. न्यूवर्कर द्वारा बनाए गए भाप के इंजन में सुधार किया।

2. गलत कथन की पहचान कीजिए।
C. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने हिन्द स्वराज नामक पुस्तक की रचना की। (हिन्द स्वराज महात्मा गांधी द्वारा लिखी गई थी।)

3. ज्युसेपी मेत्सिनी के संदर्भ में कथन को पढ़कर सही विकल्प का चयन कीजिए।

  1. मेत्सिनी को लिगुरिया में क्रांति करने के कारण बहिष्कृत किया गया।

  2. मेत्सिनी यंग इटली व यंग यूरोप नामक संगठन का निर्माण किया।

  3. मेत्सिनी ने मैटरनिख को सामाजिक व्यवस्था का सबसे खतरनाक दुश्मन बताया।
    विकल्प: D. 1, 2 व 3

4. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य की मांग को स्वीकार किया गया?
B. लाहौर अधिवेशन

5. ‘बागानों में काम करने वाले लोगों की महात्मा गाँधी के विचार एवं स्वराज को लेकर अपनी अवधारणा थी’ । कथन की समीक्षा कीजिए।
बागानों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए महात्मा गांधी के स्वराज का अर्थ बहुत अलग था। उनके लिए स्वराज का मतलब था बागानों की चारदीवारी से बाहर निकलना और अपने गाँवों में लौट जाना, जहाँ से उन्हें जबरन लाया गया था। वे चाहते थे कि उन्हें अपने पैतृक गाँवों के साथ जुड़ने की स्वतंत्रता मिले और उन्हें बागानों में कैद करके न रखा जाए। वे ‘अंदरूनी प्रवास अधिनियम’ को खत्म करना चाहते थे, जिसके तहत बिना अनुमति के बागानों से बाहर जाना मना था। उनके लिए स्वराज का मतलब था अपनी पहचान और स्वतंत्रता वापस पाना, न कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता।

6. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में विभिन्न जाति, धर्म एवं भाषा के लोगों में किस प्रकार सामूहिक अपनेपन का भाव विकसित हुआ?
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में विभिन्न जाति, धर्म और भाषा के लोगों में सामूहिक अपनेपन का भाव कई तरीकों से विकसित हुआ:

  • संयुक्त संघर्ष: स्वतंत्रता संग्राम ने लोगों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट किया, जिससे वे अपनी विभिन्न पहचानों के बावजूद एक साझा दुश्मन के खिलाफ लड़े।

  • सांस्कृतिक प्रतीक: भारत माता की छवि और ‘वंदे मातरम्’ जैसे गीत लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ने में मदद करते थे।

  • इतिहास की पुनर्व्याख्या: राष्ट्रवादी नेताओं ने भारत के गौरवशाली अतीत को उजागर किया, जिससे लोगों में अपनी विरासत पर गर्व और एकता की भावना बढ़ी।

  • गांधीजी का नेतृत्व: महात्मा गांधी ने अपने आंदोलनों (जैसे असहयोग, सविनय अवज्ञा) के माध्यम से विभिन्न समुदायों, किसानों और श्रमिकों को एक मंच पर लाया। उन्होंने सभी धर्मों और जातियों को समान माना, जिससे एकता को बल मिला।

  • लोककथाएँ और गीत: विभिन्न क्षेत्रों की लोककथाओं, गीतों और प्रतीकों का उपयोग राष्ट्रीय भावना को फैलाने और लोगों को जोड़ने के लिए किया गया।

  • भाषाई समानता: कुछ आंदोलनों में एक साझा भाषा या क्षेत्र के लोगों ने एक साथ मिलकर अपनी पहचान और अधिकारों के लिए संघर्ष किया, जिससे एक व्यापक राष्ट्रीय पहचान की भावना भी विकसित हुई।

7. A. “क्रांतिकारी फ्रांस उदारवादी प्रजातंत्र का पहला राजनीतिक प्रयोग था।” कथन का मूल्यांकन कीजिए।
“क्रांतिकारी फ्रांस उदारवादी प्रजातंत्र का पहला राजनीतिक प्रयोग था।” यह कथन काफी हद तक सही है। फ्रांसीसी क्रांति (1789) ने आधुनिक उदारवादी प्रजातंत्र के कई मूलभूत सिद्धांतों की नींव रखी:

  • समता और स्वतंत्रता: क्रांति ने ‘स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व’ के आदर्शों को जन्म दिया, जिसने सभी नागरिकों के लिए समान अधिकारों और स्वतंत्रता पर जोर दिया। यह पहला बड़ा राजनीतिक प्रयोग था जहाँ लोगों ने जन्म के आधार पर विशेषाधिकारों को अस्वीकार किया।

  • कानून के समक्ष समानता: क्रांति ने कानून के समक्ष सभी नागरिकों की समानता स्थापित की, जिससे सामंती व्यवस्था और कुलीनों के विशेषाधिकार समाप्त हुए।

  • संप्रभुता का सिद्धांत: इसने इस विचार को स्थापित किया कि संप्रभुता राजा में नहीं, बल्कि राष्ट्र में निवास करती है, और सरकार लोगों की इच्छा पर आधारित होनी चाहिए।

  • प्रतिनिधि सरकार: इसने एक निर्वाचित प्रतिनिधि सभा के माध्यम से सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त किया, जो आधुनिक लोकतांत्रिक प्रणालियों का एक प्रमुख पहलू है।

  • निजी संपत्ति का अधिकार: उदारवाद के एक प्रमुख स्तंभ के रूप में, क्रांति ने निजी संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित करने का प्रयास किया।

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: क्रांति के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर दिया गया, हालांकि यह हमेशा पूरी तरह से लागू नहीं हुआ।

हालांकि क्रांति के बाद अस्थिरता और तानाशाही (जैसे नेपोलियन) का दौर भी आया, फिर भी इसने ऐसे आदर्श और संस्थागत विचार प्रदान किए, जिन्होंने पूरे यूरोप और दुनिया में उदारवादी और लोकतांत्रिक आंदोलनों को प्रेरित किया। यह पहला बड़ा प्रयास था जिसने पुराने राजशाही और कुलीनतंत्र को चुनौती देकर एक नए, अधिक सहभागी और अधिकार-आधारित राजनीतिक व्यवस्था का प्रस्ताव रखा।

अथवा

B. जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
जर्मनी का एकीकरण (1864-1871) एक जटिल और लंबी प्रक्रिया थी, जिसमें कई युद्ध और कूटनीतिक प्रयास शामिल थे। इसे मुख्य रूप से प्रशिया के प्रधानमंत्री ऑटो वॉन बिस्मार्क के नेतृत्व में पूरा किया गया:

  1. उदारवादी राष्ट्रवाद की विफलता (1848): 1848 में, जर्मन राज्यों के उदारवादियों ने फ्रैंकफर्ट संसद में जर्मनी को एक राष्ट्र-राज्य बनाने का प्रयास किया, लेकिन यह असफल रहा। उन्होंने प्रशिया के राजा फ्रेडरिक विलियम IV को ताज पहनाना चाहा, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया, जिससे उदारवादियों की एकता की मांग कमजोर पड़ गई।

  2. प्रशिया का नेतृत्व: 1860 के दशक के बाद, प्रशिया ने जर्मनी के एकीकरण का बीड़ा उठाया। प्रशिया के मुख्यमंत्री बिस्मार्क का मानना था कि जर्मनी का एकीकरण ‘भाषणों और प्रस्तावों’ से नहीं, बल्कि ‘लौह और रक्त’ (सेना और युद्ध) से होगा।

  3. ऑस्ट्रिया-प्रशिया युद्ध (1866): बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया को जर्मनी के एकीकरण की राह से हटाने का फैसला किया। 1866 में, प्रशिया ने ऑस्ट्रिया को युद्ध में हराया, जिससे जर्मन परिसंघ का विघटन हो गया। इसके बाद प्रशिया ने उत्तरी जर्मन परिसंघ का गठन किया, जिसमें अधिकांश उत्तरी जर्मन राज्य शामिल थे।

  4. फ्रांस-प्रशिया युद्ध (1870-1871): दक्षिणी जर्मन राज्य अभी भी उत्तरी जर्मन परिसंघ से बाहर थे। बिस्मार्क ने फ्रांस के साथ युद्ध को इन राज्यों को प्रशिया के साथ एकजुट करने के अवसर के रूप में देखा। 1870 में, फ्रांस ने प्रशिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। जर्मनी के सभी राज्य प्रशिया के साथ मिलकर लड़े और फ्रांस को निर्णायक रूप से हरा दिया।

  5. जर्मन साम्राज्य की घोषणा (1871): फ्रांस पर जीत के बाद, 18 जनवरी 1871 को, वर्साय के पैलेस में, प्रशिया के राजा विलियम प्रथम को जर्मन सम्राट घोषित किया गया। इस प्रकार, जर्मनी एक एकीकृत राष्ट्र-राज्य बन गया। यह एकीकरण मुख्य रूप से सैन्य शक्ति और कूटनीति के माध्यम से हुआ, जिसमें प्रशिया का प्रभुत्व था।

8. अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

8.1 शहरों और गाँवों के बीच एक घनिष्ठ संबंध कैसे विकसित हुआ?
सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागरों ने उत्पादन के लिए गाँवों की ओर रुख करना शुरू कर दिया। वे शहरों में रहते थे, लेकिन काम गाँवों में करवाते थे। गाँवों से कच्चा माल इकट्ठा किया जाता था (जैसे ऊन) और उसे गाँव के कारीगरों (जैसे सूत कातने वाले, बुनकर) द्वारा तैयार माल (जैसे धागा, कपड़ा) में बदला जाता था। तैयार माल को फिर शहरों में फिनिशिंग के लिए लाया जाता था। इस तरह, शहरी सौदागरों की पूंजी और ग्रामीण कारीगरों के श्रम के बीच एक सीधा और घनिष्ठ संबंध विकसित हुआ।

8.2 किस शहर को फिनिशिंग सेंटर के रूप में जाना जाता था?
लंदन को फिनिशिंग सेंटर के रूप में जाना जाता था।

8.3 उत्पादन की आदि-औद्योगिक व्यवस्था आधुनिक औद्योगिक व्यवस्था से किस प्रकार भिन्न थी?
उत्पादन की आदि-औद्योगिक व्यवस्था आधुनिक औद्योगिक व्यवस्था से कई मायनों में भिन्न थी:

  • स्थान और नियंत्रण: आदि-औद्योगिक व्यवस्था में उत्पादन कारखानों के बजाय घरों में होता था और इस पर सौदागरों का नियंत्रण होता था। आधुनिक औद्योगिक व्यवस्था में उत्पादन बड़े कारखानों में केंद्रीकृत होता है, जिसमें बड़े पैमाने पर मशीनरी का उपयोग होता है।

  • श्रम: आदि-औद्योगिक व्यवस्था में प्रत्येक सौदागर 20-25 मजदूरों से काम करवाता था, जो आमतौर पर परिवार के सदस्य होते थे या छोटे पैमाने पर काम करते थे। आधुनिक औद्योगिक व्यवस्था में हजारों मजदूर एक ही कारखाने में काम करते हैं और काम अधिक विशिष्ट होता है।

  • तकनीक: आदि-औद्योगिक व्यवस्था में हाथ से काम करने या सरल उपकरणों का उपयोग होता था। आधुनिक औद्योगिक व्यवस्था में जटिल मशीनों और नई तकनीकों का व्यापक उपयोग होता है।

  • पैमाना: आदि-औद्योगिक व्यवस्था में उत्पादन छोटे पैमाने पर होता था। आधुनिक औद्योगिक व्यवस्था में उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है, जिससे बड़े बाजारों की पूर्ति की जा सकती है।

9. मानचित्र आधारित प्रश्न 2 अंक
(यहां मैं आपको मानचित्र नहीं दिखा सकता, लेकिन मैं उन स्थानों के नाम बता सकता हूं जिनकी पहचान करनी है। आपको दिए गए मानचित्र पर इन स्थानों को चिह्नित करना होगा।)

(i) उस स्थान की पहचान कीजिए जहाँ सितम्बर 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था।
कलकत्ता (अब कोलकाता)

(ii) उस स्थान की पहचान कीजिए जहाँ महात्मा गांधी ने सूती कपड़ा मिल मजदूरों के लिए आंदोलन किया।
अहमदाबाद


खण्ड ख: भूगोल

10. भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम किस वर्ष लागू हुआ?
B. 1972

11. निम्नलिखित विशेषताओं के आधार पर मृदा की पहचान कीजिए।

  1. इन मृदाओं का निर्माण भारी वर्षा से अत्यधिक निक्षालन (leaching) के कारण हुआ है।

  2. यह मृदा काजू की कृषि के लिए उपयुक्त है।
    C. लेटराइट मृदा

12. भैरोदेव डाकव सोंचुरी भारत के किस राज्य में अवस्थित है?
A. राजस्थान

13. गलत मिलान की पहचान कीजिए।
D. लाल मृदा – सेब की कृषि (लाल मृदा सेब की कृषि के लिए उपयुक्त नहीं है, यह अक्सर बाजरा, दालें आदि के लिए होती है, जबकि सेब अक्सर पहाड़ी क्षेत्रों की अम्लीय मिट्टी में उगाए जाते हैं।)

14. क्या संसाधनों का अति-उपयोग किए बिना भी विकास संभव है? उदाहरण सहित समझाइए।
हाँ, संसाधनों का अति-उपयोग किए बिना भी विकास संभव है, इसे सतत विकास (Sustainable Development) कहते हैं। सतत विकास का अर्थ है कि हम अपनी वर्तमान जरूरतों को पूरा करें, लेकिन भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों को खतरे में डाले बिना। इसके कुछ उदाहरण हैं:

  • नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलविद्युत ऊर्जा जैसे स्रोतों का उपयोग जीवाश्म ईंधन (जो सीमित हैं और प्रदूषण फैलाते हैं) के बजाय करना। इससे संसाधनों का अति-दोहन नहीं होता और पर्यावरण को भी लाभ होता है।

  • जल संचयन: वर्षा जल संचयन और जल-कुशल सिंचाई तकनीकों (जैसे ड्रिप सिंचाई) का उपयोग करके पानी का समझदारी से उपयोग करना, जिससे भूजल का अत्यधिक दोहन रोका जा सके।

  • जैविक कृषि: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग कम करके जैविक कृषि को बढ़ावा देना, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहे और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान न हो।

  • पुनर्चक्रण और पुन:उपयोग (Reduce, Reuse, Recycle): उत्पादों का कम उपयोग करना, उन्हें दोबारा उपयोग करना और कचरे का पुनर्चक्रण करना, जिससे नए संसाधनों की आवश्यकता कम हो और अपशिष्ट प्रबंधन बेहतर हो।

  • पर्यावरण के अनुकूल परिवहन: सार्वजनिक परिवहन, साइकिल और इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग करना, जिससे जीवाश्म ईंधन की खपत और वायु प्रदूषण कम हो।

ये सभी उदाहरण दर्शाते हैं कि हम आर्थिक विकास प्राप्त करते हुए भी प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण कर सकते हैं और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव को कम कर सकते हैं।

15. वनों के संरक्षण में समुदायों की भूमिका पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
वनों के संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। सदियों से, कई समुदाय वनों के साथ सामंजस्य बिठाकर रहते आए हैं और उन्हें अपनी आजीविका और संस्कृति का अभिन्न अंग मानते हैं।

  • प्रत्यक्ष निर्भरता: कई आदिवासी और ग्रामीण समुदाय अपनी भोजन, ईंधन, चारा, औषधि और अन्य आवश्यकताओं के लिए सीधे वनों पर निर्भर करते हैं। यह निर्भरता उन्हें वनों का सम्मान करने और उनकी रक्षा करने के लिए प्रेरित करती है।

  • पारंपरिक ज्ञान: इन समुदायों के पास वन संसाधनों के प्रबंधन और संरक्षण का समृद्ध पारंपरिक ज्ञान होता है। वे जानते हैं कि कब और कैसे संसाधनों का उपयोग करना है ताकि उनकी स्थिरता बनी रहे।

  • वन्यजीव संरक्षण: कई स्थानों पर, समुदायों ने वन्यजीवों की रक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसे राजस्थान में बिश्नोई समुदाय जो पेड़ों और वन्यजीवों की रक्षा के लिए अपनी जान तक देने को तैयार रहते हैं।

  • सहभागी वन प्रबंधन: सरकारें भी अब इस बात को स्वीकार कर रही हैं कि वनों के संरक्षण में समुदायों की भागीदारी आवश्यक है। संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) कार्यक्रम जैसे पहल, स्थानीय समुदायों को वन विभाग के साथ मिलकर वनों का प्रबंधन करने में सशक्त बनाते हैं, जिससे वन कटाई को रोका जा सके और वनों का पुनर्जीवन हो सके।

  • आंदोलन: चिपको आंदोलन जैसे आंदोलन, जो स्थानीय महिलाओं द्वारा पेड़ों को काटने से बचाने के लिए शुरू किए गए थे, ने दुनिया को दिखाया कि कैसे समुदाय वनों की रक्षा के लिए खड़े हो सकते हैं।

संक्षेप में, स्थानीय समुदाय वनों के प्रहरी होते हैं। उनकी भागीदारी के बिना, वनों का प्रभावी और स्थायी संरक्षण मुश्किल है।

16. भारत में जल संरक्षण की किन्हीं तीन पारंपरिक विधियों की व्याख्या कीजिए।
भारत में जल संरक्षण की कई पारंपरिक विधियाँ हैं जो सदियों से उपयोग में लाई जाती रही हैं:

  1. टांके (Tankas): ये राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों में पाए जाने वाले भूमिगत टैंक होते हैं, जिनका उपयोग वर्षा जल को इकट्ठा करने के लिए किया जाता है। घरों या आँगन की छतों से गिरने वाले वर्षा जल को पाइपों के माध्यम से इन टांकों में जमा किया जाता है। यह पेयजल का एक विश्वसनीय स्रोत प्रदान करता है, खासकर सूखे के समय।

  2. जोहड़ (Johads): ये छोटे मिट्टी के तटबंध होते हैं जो अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में बनाए जाते हैं। ये वर्षा जल को रोककर मिट्टी में रिसने में मदद करते हैं, जिससे भूजल स्तर बढ़ता है। ये तालाबनुमा संरचनाएँ जानवरों और सिंचाई के लिए पानी भी उपलब्ध कराती हैं।

  3. बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली (Bamboo Drip Irrigation System): यह मेघालय जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में उपयोग की जाने वाली एक प्राचीन विधि है। इसमें बाँस के पाइपों का उपयोग करके झरने के पानी को सैकड़ों मीटर दूर खेतों तक पहुँचाया जाता है। बाँस के पाइपों में छेद करके पानी को सीधे पौधों की जड़ों तक बूँद-बूँद करके पहुँचाया जाता है, जिससे पानी की बर्बादी कम होती है।

इन विधियों ने स्थानीय जरूरतों के अनुरूप जल प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और आज भी कई क्षेत्रों में प्रासंगिक हैं।

अथवा

“जल की मात्रा को न तो घटाया जा सकता है और न ही बढ़ाया जा सकता है।” कथन की व्याख्या कीजिए।
यह कथन जल के जल चक्र (Water Cycle) के सिद्धांत पर आधारित है। जल पृथ्वी पर लगातार एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होता रहता है, लेकिन इसकी कुल मात्रा स्थिर रहती है।

  • जलचक्र की प्रक्रिया: पृथ्वी पर जल वाष्पीकरण (समुद्र, नदियाँ, झीलों से पानी का वाष्प बनना), संघनन (वाष्प का बादल बनना), वर्षण (बादलों से वर्षा या बर्फ गिरना), और अपवाह (पानी का सतह पर बहना) की प्रक्रियाओं से गुजरता है। यह महासागरों, वायुमंडल, भूमिगत जल, नदियों, झीलों और बर्फ के रूप में मौजूद रहता है।

  • कुल मात्रा का संरक्षण: इस पूरे चक्र में, जल पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर नहीं जाता और न ही बाहर से नया जल आता है। यह केवल अपना रूप बदलता है (ठोस, तरल, गैस) और स्थान बदलता है। इसलिए, पृथ्वी पर जल की कुल मात्रा हमेशा समान रहती है।

  • उपयोग योग्य जल की समस्या: हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे पास हमेशा पर्याप्त ‘उपयोग योग्य’ जल रहेगा। पीने योग्य, कृषि योग्य और औद्योगिक उपयोग के लिए उपलब्ध ताजे जल की मात्रा सीमित है और प्रदूषण, अत्यधिक उपयोग और जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी उपलब्धता प्रभावित हो रही है। खारा पानी (समुद्री पानी) पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में है, लेकिन यह सीधे उपयोग योग्य नहीं है।

इसलिए, कथन का अर्थ यह है कि पृथ्वी पर कुल जल का भंडार नियत है, लेकिन मनुष्य के लिए सुलभ और उपयोग योग्य ताजे जल का प्रबंधन और संरक्षण आवश्यक है।

17. भारत के संदर्भ में संसाधन नियोजन की आवश्यकताओं का मूल्यांकन कीजिए।
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में संसाधन नियोजन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसकी आवश्यकता के कई कारण हैं:

  1. संसाधनों का असमान वितरण: भारत में संसाधन असमान रूप से वितरित हैं। कुछ क्षेत्रों में कुछ संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं (जैसे झारखंड में कोयला), जबकि अन्य क्षेत्रों में उनकी कमी है। नियोजन यह सुनिश्चित करता है कि संसाधनों का वितरण और उपयोग अधिक न्यायसंगत हो।

  2. संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग: तीव्र आर्थिक विकास की होड़ में अक्सर संसाधनों का अंधाधुंध दोहन होता है। नियोजन संसाधनों के विवेकपूर्ण और दीर्घकालिक उपयोग को बढ़ावा देता है, जिससे वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी उपलब्ध रहें (सतत विकास)।

  3. पर्यावरणीय संतुलन: संसाधनों का अत्यधिक दोहन पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है (जैसे प्रदूषण, वनों की कटाई)। नियोजन पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने में मदद करता है।

  4. प्रादेशिक असंतुलन दूर करना: जिन क्षेत्रों में संसाधनों की कमी है, वहां विकास योजनाओं के माध्यम से संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है, जिससे प्रादेशिक असंतुलन कम हो।

  5. प्रौद्योगिकी और कौशल का उपयोग: नियोजन यह तय करने में मदद करता है कि संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिए कौन सी तकनीक और कौशल आवश्यक हैं और उनका विकास कैसे किया जाए।

  6. राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों की प्राप्ति: संसाधनों का कुशल प्रबंधन और नियोजन राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों, जैसे गरीबी उन्मूलन, आर्थिक विकास और जीवन स्तर में सुधार, को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।

संक्षेप में, संसाधन नियोजन भारत के समग्र और सतत विकास के लिए एक अनिवार्य प्रक्रिया है।

अथवा

भारत में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की मृदाओं की पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
भारत में विभिन्न भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों के कारण कई प्रकार की मृदाएँ पाई जाती हैं, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं:

  1. जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil): यह भारत की सबसे व्यापक और उपजाऊ मृदा है, जो उत्तरी मैदानों और नदी घाटियों में पाई जाती है। यह नदियों द्वारा लाए गए अवसादों से बनी है और इसमें पोटाश, फॉस्फोरस और चूना प्रचुर मात्रा में होता है। यह गेहूं, चावल, गन्ना और दलहन जैसी फसलों के लिए उपयुक्त है।

  2. काली मृदा (Black Soil / Regur Soil): यह मृदा दक्कन पठार के उत्तर-पश्चिमी भागों में पाई जाती है और कपास की खेती के लिए प्रसिद्ध है (इसलिए इसे काली कपास मृदा भी कहते हैं)। यह लावा प्रवाह से बनती है, इसमें नमी धारण करने की अच्छी क्षमता होती है और यह कैल्शियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम, पोटाश और चूना से भरपूर होती है।

  3. लाल और पीली मृदा (Red and Yellow Soil): ये मृदाएँ पूर्वी और दक्षिणी दक्कन पठार के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती हैं। क्रिस्टलीय आग्नेय चट्टानों पर लोहे के फैलाव के कारण इसका रंग लाल होता है। जब यह जलयोजित होती है, तो यह पीली दिखाई देती है। इसमें आमतौर पर नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और ह्यूमस की कमी होती है।

  4. लेटराइट मृदा (Laterite Soil): यह उच्च तापमान और भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है, जहाँ तीव्र निक्षालन (leaching) होता है। यह अक्सर कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और ओडिशा के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है। इसमें ह्यूमस की कमी होती है, लेकिन यह चाय, कॉफी और काजू की खेती के लिए उपयोगी है।

  5. शुष्क मृदा (Arid Soil): ये मृदाएँ राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती हैं। इनमें नमक की मात्रा अधिक होती है, ह्यूमस और नमी की कमी होती है, और इनका रंग लाल से भूरा होता है। उचित सिंचाई के साथ बाजरा, ज्वार जैसी फसलें उगाई जा सकती हैं।

  6. वन मृदा (Forest Soil): ये मृदाएँ पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं जहाँ पर्याप्त वर्षावन उपलब्ध हैं। ये अम्लीय होती हैं और इनमें ह्यूमस की मात्रा कम होती है। इनका गुण ऊपरी ढलानों पर और घाटियों में भिन्न होता है।

18. मानचित्र आधारित प्रश्न 3 अंक
(यहां मैं आपको मानचित्र नहीं दिखा सकता, लेकिन मैं उन बांधों के राज्यों के नाम बता सकता हूं जिनकी पहचान करनी है। आपको दिए गए मानचित्र पर इन बांधों को उपयुक्त चिह्नों से अंकित करना होगा।)

(18.1) सलाल बाँधजम्मू और कश्मीर
(18.2) टिहरी बाँधउत्तराखंड
(18.3) हीराकुड बाँधओडिशा
(18.4) नागार्जुन सागर बाँधतेलंगाना / आंध्र प्रदेश


खण्ड ग: राजनीति – विज्ञान

19. 1956 के कानून के द्वारा श्रीलंका में किस धर्म को संरक्षण प्रदान किया गया?
D. बौद्ध धर्म

20. नीचे दिए गए प्रश्न में, दो प्राक्कथन दिए गए हैं एक अभिकथन (A) और दूसरा कारण (R)। कथनों को पढ़िए और सही विकल्प का चयन कीजिए।
अभिकथन (A): भारत में महिलाओं में साक्षरता की दर पुरुषों की अपेक्षा अभी भी कम है।
कारण (R): भारतीय समाज अभी भी पितृ-प्रधान है।
विकल्प: A. अभिकथन (A) एवं कारण (R) दोनों सही हैं एवं कारण, अभिकथन की सही व्याख्या है। (भारत में पितृ-प्रधान समाज के कारण लड़कियों की शिक्षा पर कम ध्यान दिया जाता है, जिससे उनकी साक्षरता दर पुरुषों की तुलना में कम है।)

21. भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में निम्नलिखित में से किस भाषा को शामिल नहीं किया गया है?
C. जर्मन

22. सही मिलान करके उचित विकल्प का चयन कीजिए।
स्तंभ क | स्तंभ ख
a संघ सूची | II संचार
b राज्य सूची | III सिंचाई
c समवर्ती सूची | I गोद लेना

सही मिलान:
a – II (संघ सूची – संचार)
b – III (राज्य सूची – सिंचाई)
c – I (समवर्ती सूची – गोद लेना)

विकल्प: D. a-II, b-III, c-I

23. नीचे दो कथन, कथन I और कथन II के रूप में दिए गए हैं। दोनों कथनों को पढ़िए और सही विकल्प का चयन कीजिए।
कथन I: श्रीलंका 1947 में आजाद हुआ।
कथन II: श्रीलंका में गृहयुद्ध हुआ।
विकल्प: C. कथन I गलत और कथन II सही है। (श्रीलंका 1948 में आजाद हुआ था, न कि 1947 में। श्रीलंका में गृहयुद्ध हुआ था।)

24. यूरोपीय यूनियन का मुख्यालय कहाँ अवस्थित है?
D. ब्रूसेल्स

25. A. सत्ता के क्षैतिज वितरण पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
सत्ता का क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution of Power) लोकतंत्र में शक्ति के बंटवारे का एक रूप है, जहाँ सरकार के विभिन्न अंग – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका – एक ही स्तर पर रहते हुए अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हैं।

  • उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकार का कोई भी एक अंग असीमित शक्ति का प्रयोग न कर सके। यह ‘नियंत्रण और संतुलन’ (Checks and Balances) के सिद्धांत पर आधारित है।

  • विधायिका: कानून बनाती है।

  • कार्यपालिका: कानूनों को लागू करती है।

  • न्यायपालिका: कानूनों की व्याख्या करती है और न्याय प्रदान करती है।

  • आपसी नियंत्रण: प्रत्येक अंग दूसरे अंग पर कुछ नियंत्रण रखता है। उदाहरण के लिए, न्यायपालिका विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों की संवैधानिकता की समीक्षा कर सकती है, और कार्यपालिका विधायिका के प्रति जवाबदेह होती है।
    यह व्यवस्था सरकार को अधिक जवाबदेह, पारदर्शी और कुशल बनाती है, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करती है।

अथवा

B. सत्ता के उर्ध्वाधर वितरण पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
सत्ता का उर्ध्वाधर वितरण (Vertical Distribution of Power) लोकतंत्र में शक्ति के बंटवारे का एक और महत्वपूर्ण रूप है, जहाँ सरकार विभिन्न स्तरों पर विभाजित होती है। इसे संघवाद (Federalism) भी कहा जाता है।

  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य एक बड़े और विविधतापूर्ण देश में शासन को अधिक प्रभावी और सहभागी बनाना है।

  • स्तर: इसमें सरकार के दो या अधिक स्तर होते हैं:

    • केंद्र सरकार (Central Government): पूरे देश के लिए नीतियाँ बनाती है (जैसे रक्षा, विदेश मामले)।

    • राज्य सरकार (State Government): राज्यों के लिए नीतियाँ बनाती है (जैसे पुलिस, कृषि)।

    • स्थानीय सरकार (Local Government): गाँवों और शहरों के स्थानीय प्रशासन के लिए जिम्मेदार होती है (जैसे पंचायतें, नगरपालिकाएँ)।

  • शक्तियों का विभाजन: प्रत्येक स्तर की सरकार के पास अपने-अपने अधिकार क्षेत्र होते हैं, जो संविधान द्वारा स्पष्ट रूप से परिभाषित होते हैं। केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने विषयों पर कानून बना सकती हैं।

  • लाभ: यह विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों की आकांक्षाओं को समायोजित करता है, सत्ता के केंद्रीकरण को रोकता है, और स्थानीय समस्याओं को स्थानीय स्तर पर हल करने में मदद करता है। भारत, बेल्जियम, कनाडा इसके अच्छे उदाहरण हैं।

26. धर्म एवं राजनीति के आपसी संबंधों पर महात्मा गांधी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
महात्मा गांधी धर्म और राजनीति को अलग-अलग नहीं मानते थे। उनके विचार थे कि:

  • नैतिकता का आधार: गांधीजी का मानना था कि राजनीति को नैतिकता और धर्म के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए। उनके लिए, धर्म का अर्थ किसी विशेष पंथ या रीति-रिवाज का पालन करना नहीं था, बल्कि यह सार्वभौमिक नैतिक मूल्यों जैसे सत्य, अहिंसा, न्याय और समानता को दर्शाता था।

  • धर्मरहित राजनीति का खतरा: उनका तर्क था कि धर्मरहित राजनीति पूरी तरह से विनाशकारी होगी, क्योंकि यह नैतिक मूल्यों से रहित हो जाएगी। वे चाहते थे कि राजनीति में लोगों के कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति को प्राथमिकता दी जाए।

  • सभी धर्मों का सम्मान: गांधीजी सभी धर्मों का सम्मान करते थे और ‘सर्वधर्म समभाव’ के सिद्धांत में विश्वास रखते थे। वे चाहते थे कि राजनीति में किसी एक धर्म को दूसरे से श्रेष्ठ न माना जाए, बल्कि सभी धर्मों के लोग शांति और सद्भाव से रहें।

  • रामराज्य की अवधारणा: उनकी ‘रामराज्य’ की अवधारणा एक आदर्श समाज का प्रतिनिधित्व करती थी जहाँ न्याय, समानता और सभी के लिए कल्याण सुनिश्चित हो, जो धर्म (नैतिक मूल्यों) पर आधारित शासन था।

  • धर्म का व्यक्तिगत पहलू: हालांकि, वे यह भी मानते थे कि धर्म एक व्यक्तिगत मामला है और राज्य को किसी विशेष धर्म पर थोपने या उसका समर्थन करने से बचना चाहिए। राज्य को सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहना चाहिए।

संक्षेप में, गांधीजी के लिए धर्म राजनीति में नैतिक मार्गदर्शन प्रदान करने वाला एक महत्वपूर्ण तत्व था, जो उसे स्वार्थ और हिंसा से बचाता था, और सभी के कल्याण को सुनिश्चित करता था।

27. A. भारत की भाषा – नीति का मूल्यांकन कीजिए।
भारत की भाषा नीति देश की विविधता को समायोजित करने और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए बनाई गई एक जटिल और महत्वपूर्ण रणनीति है।

  • हिंदी को राजभाषा का दर्जा: संविधान ने हिंदी को राजभाषा (Official Language) का दर्जा दिया, लेकिन इसे राष्ट्रभाषा (National Language) नहीं बनाया।

  • अन्य भाषाओं का सम्मान: संविधान ने 22 भाषाओं को अनुसूचित भाषाओं (Scheduled Languages) के रूप में मान्यता दी है, जिससे उन्हें समान सम्मान और विकास का अवसर मिलता है।

  • अंग्रेजी का सह-राजभाषा के रूप में उपयोग: हिंदी को बढ़ावा देने के बावजूद, गैर-हिंदी भाषी राज्यों की मांग के कारण अंग्रेजी को भी सह-राजभाषा के रूप में जारी रखा गया। यह निर्णय हिंदी बनाम अंग्रेजी के विवाद को सुलझाने में महत्वपूर्ण था और कई राज्यों में विरोध प्रदर्शनों को शांत किया।

  • राज्य पुनर्गठन: भारत में राज्यों का पुनर्गठन मुख्य रूप से भाषा के आधार पर किया गया, जिससे भाषाई समुदायों को अपनी पहचान बनाए रखने और अपने क्षेत्रों का प्रभावी ढंग से शासन करने का अवसर मिला।

  • शिक्षा नीति: त्रि-भाषा सूत्र (Three-language Formula) का प्रस्ताव किया गया, जिसमें हिंदी, अंग्रेजी और एक क्षेत्रीय भाषा शामिल है, हालांकि यह हमेशा पूरी तरह से लागू नहीं हुआ है।

सकारात्मक मूल्यांकन:

  • इस नीति ने भाषाई विविधता का सम्मान किया और देश को भाषाई आधार पर टूटने से बचाया।

  • यह एक लचीली नीति साबित हुई है जो बदलती परिस्थितियों के अनुसार समायोजित हुई है।

  • इससे भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी भाषाओं को संरक्षित करने और विकसित करने का अवसर मिला है।

नकारात्मक मूल्यांकन/चुनौतियाँ:

  • हिंदी को बढ़ावा देने के प्रयासों को गैर-हिंदी भाषी राज्यों में कभी-कभी हिंदी थोपने के रूप में देखा गया, जिससे विवाद उत्पन्न हुए।

  • अंग्रेजी का निरंतर उपयोग कुछ लोगों द्वारा औपनिवेशिक विरासत के रूप में देखा जाता है, जबकि अन्य इसे अंतरराष्ट्रीय संचार और आधुनिक शिक्षा के लिए आवश्यक मानते हैं।

  • कई क्षेत्रीय भाषाओं को अभी भी पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पाता है, जिससे उनके विकास में बाधा आती है।

कुल मिलाकर, भारत की भाषा नीति ने देश की भाषाई विविधता को प्रबंधित करने में काफी हद तक सफलता प्राप्त की है, लेकिन संतुलन बनाए रखना और सभी भाषाओं को समान अवसर प्रदान करना एक सतत चुनौती बनी हुई है।

27. B. सत्ता के विकेंद्रीकरण की आवश्यकता क्यों होती है? स्थानीय स्वशासन की आवश्यकताओं पर चर्चा कीजिए।
(जारी)

  1. शक्ति का संतुलन: यह शक्ति के अत्यधिक केंद्रीकरण को रोकता है, जिससे मनमानी और तानाशाही की संभावना कम होती है।

  2. संसाधनों का प्रभावी उपयोग: स्थानीय स्तर पर संसाधनों की पहचान और उनके उपयोग की योजना बेहतर तरीके से बनाई जा सकती है।

  3. समावेशी विकास: यह हाशिये पर पड़े और वंचित वर्गों को भी निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल होने का अवसर देता है, जिससे समावेशी विकास को बढ़ावा मिलता है।

स्थानीय स्वशासन की आवश्यकताएँ:
स्थानीय स्वशासन, जैसे कि भारत में पंचायती राज और नगरपालिकाएँ, विकेंद्रीकरण का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसकी आवश्यकताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. ग्राम-स्तर पर विकास: ग्राम पंचायतों और नगरपालिकाओं को अपने क्षेत्र की विशिष्ट विकास योजनाओं को बनाने और लागू करने की आवश्यकता होती है, जैसे पानी, स्वच्छता, सड़क और शिक्षा।

  2. लोकतांत्रिक जवाबदेही: स्थानीय सरकारें सीधे मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होती हैं, जिससे स्थानीय नेताओं को अपने प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

  3. नागरिक सेवाओं का वितरण: स्थानीय स्तर पर नागरिकों को आवश्यक सेवाएँ (जैसे पानी की आपूर्ति, सीवरेज, कचरा निपटान, सार्वजनिक स्वास्थ्य) प्रदान करने के लिए स्थानीय निकायों की आवश्यकता होती है।

  4. वित्तीय स्वायत्तता: स्थानीय सरकारों को अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन और उन्हें जुटाने की शक्ति की आवश्यकता होती है। इसके बिना वे राज्य या केंद्र सरकार पर पूरी तरह निर्भर हो जाते हैं।

  5. महिलाओं और कमजोर वर्गों का प्रतिनिधित्व: भारत में 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से महिलाओं और अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं, ताकि वे स्थानीय प्रशासन में सक्रिय रूप से भाग ले सकें।

  6. योजना और कार्यान्वयन: स्थानीय स्वशासन, ‘नीचे से ऊपर’ की योजना प्रक्रिया को सक्षम बनाता है, जहाँ विकास योजनाएँ स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर बनाई जाती हैं, बजाय इसके कि वे केंद्र से थोपी जाएँ।

संक्षेप में, सत्ता का विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्वशासन एक मजबूत और सहभागी लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं, जो शासन को लोगों के करीब लाते हैं और उन्हें अपने स्वयं के भाग्य का निर्माता बनने में सशक्त बनाते हैं।

28. अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(अनुच्छेद यहाँ दोहराया नहीं जा रहा है, सीधे प्रश्नों के उत्तर दिए जा रहे हैं।)

28.1 1976 के समान मजदूरी से सम्बंधित अधिनियम का मुख्य प्रावधान क्या है?
1976 के समान मजदूरी से संबंधित अधिनियम का मुख्य प्रावधान यह था कि समान काम के लिए समान मजदूरी दी जाएगी, चाहे वह पुरुष करे या स्त्री।

28.2 भारत में ऊँची तनख्वाह वाले और ऊँचे पदों पर पहुँचने वाली महिलाओं की संख्या कम क्यों है?
भारत में ऊँची तनख्वाह वाले और ऊँचे पदों पर पहुँचने वाली महिलाओं की संख्या कम होने के कई कारण हैं:

  • पितृ-प्रधान समाज: भारतीय समाज अभी भी काफी हद तक पितृ-प्रधान है, जहाँ लड़कों को लड़कियों की तुलना में अधिक प्राथमिकता दी जाती है, खासकर शिक्षा और करियर के अवसरों के मामले में।

  • शिक्षा में निवेश: माता-पिता अपने संसाधनों को लड़कों की शिक्षा पर अधिक खर्च करना पसंद करते हैं, जिससे लड़कियों को उच्च शिक्षा और कौशल विकास के अवसर कम मिलते हैं।

  • पारिवारिक जिम्मेदारियाँ: महिलाओं पर घर और परिवार की देखभाल की मुख्य जिम्मेदारी होती है, जिससे उनके लिए करियर में आगे बढ़ना या उच्च पदों पर काम करना मुश्किल हो जाता है।

  • लैंगिक रूढ़िवादिता: कई क्षेत्रों में महिलाओं को विशिष्ट भूमिकाओं (जैसे शिक्षक, नर्स) तक सीमित कर दिया जाता है, जबकि उन्हें पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान माने जाने वाले क्षेत्रों में आगे बढ़ने से हतोत्साहित किया जाता है।

  • भेदभाव: कार्यस्थल पर लैंगिक भेदभाव, वेतन में अंतर और पदोन्नति के अवसरों में असमानता भी एक बड़ा कारण है।

  • सुरक्षा चिंताएँ: कार्यस्थल पर सुरक्षा संबंधी चिंताएँ भी महिलाओं की भागीदारी को सीमित करती हैं।

28.3 भारत में घटते बाल शिशु अनुपात के प्रमुख कारण का विश्लेषण कीजिये।
भारत में घटता बाल शिशु अनुपात (प्रति हज़ार लड़कों पर लड़कियों की संख्या) एक गंभीर सामाजिक समस्या है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  • पुत्र-प्राप्ति की प्राथमिकता: भारतीय समाज में पुत्र को वंश चलाने वाला, बुढ़ापे का सहारा और अंतिम संस्कार करने वाला माना जाता है, जिससे पुत्र-प्राप्ति की गहरी इच्छा होती है।

  • दहेज प्रथा: लड़कियों की शादी में दहेज देने की प्रथा एक बड़ा आर्थिक बोझ मानी जाती है, जिससे कई परिवार लड़कियों के जन्म से बचने की कोशिश करते हैं।

  • तकनीकी प्रगति का दुरुपयोग: लिंग-चयन तकनीक (जैसे अल्ट्रासाउंड) का दुरुपयोग करके गर्भ में ही लिंग का पता लगाकर कन्या भ्रूण हत्या की जाती है।

  • लैंगिक भेदभाव: लड़कियों को आर्थिक बोझ और लड़कों को संपत्ति मानने की मानसिकता, लड़कियों के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार को बढ़ावा देती है।

  • गरीबी और शिक्षा का अभाव: गरीबी और शिक्षा की कमी वाले परिवारों में यह समस्या अधिक गंभीर हो सकती है, जहाँ लड़कियों को कम महत्व दिया जाता है।

  • कमजोर कानून प्रवर्तन: कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कानून मौजूद होने के बावजूद, उनका प्रभावी ढंग से पालन न होना भी एक कारण है।

घटते बाल शिशु अनुपात के दीर्घकालिक परिणाम गंभीर होते हैं, जैसे समाज में लैंगिक असंतुलन, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि और सामाजिक अस्थिरता।


खण्ड घ: अर्थशास्त्र

29. नीचे दी गई सारणी में भारत और उसके पड़ोसी देशों के संबंध में कुछ आंकड़े दिए गए हैं। सारणी को ध्यान से पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्न का उत्तर दीजिए।
(सारणी यहाँ दोहराई नहीं जा रही है।)

जन्म के समय सर्वाधिक संभावित आयु (निम्नतम से उच्चतम) के विषय में कौन-सा क्रम सही है?
सारणी के अनुसार जन्म के समय संभावित आयु (Life Expectancy at Birth) के आंकड़े:

  • पाकिस्तान: 66.6

  • म्यांमार: 66.7

  • भारत: 68.8

  • नेपाल: 70.6

  • बांग्लादेश: 72.8

  • श्रीलंका: 75.5

निम्नतम से उच्चतम क्रम है:
पाकिस्तान (66.6) -> म्यांमार (66.7) -> भारत (68.8) -> नेपाल (70.6) -> बांग्लादेश (72.8) -> श्रीलंका (75.5)

विकल्प: A. पाकिस्तान, म्यांमार, भारत, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका

30. गलत मिलान की पहचान कीजिए।
A. प्राथमिक क्षेत्रक – डेयरी (सही)
B. प्राथमिक क्षेत्रक – बैंकिंग (गलत)
C. प्राथमिक क्षेत्रक – मत्स्यन (सही)
D. प्राथमिक क्षेत्रक – कृषि (सही)

गलत मिलान है: B. प्राथमिक क्षेत्रक – बैंकिंग (बैंकिंग तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधि है।)

31. नीचे दो कथन दिए गए, अभिकथन (A) और कारण (R)। कथनों को पढ़िए और सही विकल्प का चयन कीजिए।
अभिकथन (A): एक देश की अर्थव्यवस्था पर संकट का असर दूसरे देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है।
कारण (R) : वैश्वीकरण ने देशों की अर्थव्यवस्था को आपस में जोड़ दिया है।
विकल्प: A. अभिकथन (A) एवं कारण (R) दोनों सही हैं एवं कारण, अभिकथन की सही व्याख्या है। (वैश्वीकरण के कारण देश एक-दूसरे से आर्थिक रूप से जुड़ गए हैं, इसलिए एक देश की अर्थव्यवस्था में संकट का असर दूसरों पर पड़ता है।)

32. मानव विकास के विषय में निम्नलिखित कथनों को पढ़िए और सही विकल्प का चयन कीजिए।

  1. यह संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा तैयार किया गया एक समग्र सूचकांक है। (सही, यह मानव विकास सूचकांक (HDI) है।)

  2. इसके मापन के लिए लम्बी उम्र, साक्षरता और प्रति व्यक्ति आय मापदंड है। (सही, ये HDI के मुख्य संकेतक हैं।)

  3. विकसित और निम्न विकासशील देशों के अनुसार देशों की रैंकिंग की जाती है। (सही, HDI देशों को मानव विकास के स्तर के आधार पर रैंक करता है।)

  4. विश्व बैंक जीवन की गुणवत्ता के आधार पर मानव विकास की रिपोर्ट तैयार करता है। (गलत, मानव विकास रिपोर्ट UNDP (संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम) द्वारा तैयार की जाती है, न कि विश्व बैंक द्वारा। विश्व बैंक आमतौर पर GDP या प्रति व्यक्ति आय पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है।)

विकल्प: C. केवल 1 और 3 (विकल्प में 2 भी सही होना चाहिए था, लेकिन दिए गए विकल्पों में सबसे सटीक 1 और 3 हैं। अगर कोई ऐसा विकल्प होता जिसमें 1, 2 और 3 शामिल होते, तो वह बेहतर होता। लेकिन दिए गए विकल्पों में, 4 गलत होने के कारण C सबसे उपयुक्त है यदि हम मान लें कि विकल्प 2 भी सही है और C केवल 1 और 3 को चुनता है।)
सुधार: यदि हम विकल्पों को देखें तो, 1, 2, 3 सही हैं, और 4 गलत है।

  • A. केवल 1 और 2

  • B. केवल 2 और 3

  • C. केवल 1 और 3

  • D. केवल 2 और 4

इस स्थिति में, चूंकि कथन 1, 2 और 3 सभी सही हैं, और 4 गलत है, तो कोई भी विकल्प पूरी तरह से इन तीनों को कवर नहीं करता। हालांकि, यदि केवल एक विकल्प चुनना हो, और 4 निश्चित रूप से गलत है, तो हमें उन विकल्पों में से चुनना होगा जो सही कथनों को अधिकतम रूप से शामिल करते हैं।
विकल्प A: 1 और 2 (सही)
विकल्प B: 2 और 3 (सही)
विकोलप C: 1 और 3 (सही)

यह एक त्रुटिपूर्ण प्रश्न प्रतीत होता है क्योंकि 1, 2 और 3 तीनों ही सही हैं। लेकिन, यदि हम सबसे व्यापक रूप से सही विकल्प चुनना चाहें, तो कोई एक पूरी तरह से फिट नहीं बैठता।
यदि प्रश्न का आशय यह है कि “कौन से कथन सही हैं”, तो 1, 2, 3 सभी सही हैं।
अगर मुझे एक विकल्प चुनना पड़े, और “लम्बी उम्र, साक्षरता और प्रति व्यक्ति आय” मानव विकास के मापदंड हैं, तो कथन 2 निश्चित रूप से सही है।
आइए फिर से देखें:

  1. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा तैयार। (सही)

  2. मापन के लिए लम्बी उम्र, साक्षरता, प्रति व्यक्ति आय। (सही)

  3. विकसित और निम्न विकासशील देशों के अनुसार रैंकिंग। (सही)

  4. विश्व बैंक द्वारा तैयार। (गलत)

यदि विकल्प ऐसे दिए गए हैं तो हम मान सकते हैं कि प्रश्न में कोई त्रुटि है। हालांकि, यदि हमें इनमें से चुनना ही है, तो हमें सबसे सटीक चुनना होगा।
चूंकि HDI (मानव विकास सूचकांक) UNDP द्वारा तैयार किया जाता है (कथन 1), इसमें जीवन प्रत्याशा (लम्बी उम्र), शिक्षा (साक्षरता) और प्रति व्यक्ति आय शामिल है (कथन 2), और यह देशों को रैंक करता है (कथन 3), तो 1, 2 और 3 तीनों सही हैं।
दिए गए विकल्पों में से, कोई भी एक विकल्प 1, 2, और 3 तीनों को एक साथ नहीं लेता है।
अगर हम सबसे कम गलत कथन वाले विकल्प को देखें, तो D (2 और 4) में 4 गलत है। अन्य सभी विकल्पों में सही कथन हैं।
यह प्रश्न विवादास्पद हो सकता है।

लेकिन अगर हम “समग्र सूचकांक” और “मापदंड” पर जोर दें तो 1 और 2 सबसे केंद्रीय हैं।
फिर भी, विकल्पों में एक साथ 1,2,3 नहीं है।
अगर मैं इनमें से सबसे ‘गलत’ को हटा दूँ (कथन 4), तो हमें उन विकल्पों को देखना होगा जिनमें 1, 2 या 3 हैं।
सबसे अच्छा विकल्प होगा जिसमें 1, 2, 3 तीनों हों। चूंकि ऐसा कोई विकल्प नहीं है, मैं मानता हूँ कि प्रश्न या विकल्प में त्रुटि है।

अगर मुझे दिए गए विकल्पों में से एक चुनना पड़े, तो यह थोड़ा मुश्किल है।
मानव विकास रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा तैयार की जाती है (1 सही)।
इसके मापन के लिए लम्बी उम्र (जीवन प्रत्याशा), साक्षरता (शिक्षा) और प्रति व्यक्ति आय (जीवन स्तर) मापदंड हैं (2 सही)।
यह विकसित और विकासशील देशों को रैंक करती है (3 सही)।
विश्व बैंक नहीं बनाता है (4 गलत)।

अगर मुझे केवल एक चुनना है, तो मैं A. केवल 1 और 2 चुनूँगा, क्योंकि ये HDI की मूल पहचान हैं।

33. विषम की पहचान कीजिए-
A. पर्यटन-निर्देशक, धोबी, दर्जी, कुम्हार
B. शिक्षक, डॉक्टर, सब्ज़ी विक्रेता, वकील
C. डाकिया, मोची, सैनिक, पुलिस कांस्टेबल
D. एम.टी.एन.एल., भारतीय रेल, एयर इंडिया, जेट एयरवेज, ऑल इंडिया रेडियो।

यह प्रश्न ‘विषम’ को पहचानने के लिए है।

  • A, B, C में व्यक्तियों के पेशे दिए गए हैं।

  • D में संगठन/कंपनियों के नाम हैं।
    इसलिए, D विषम है।

34. मुद्रा का आधुनिक रूप है-
D. कागज़ के करेंसी नोट

35. “असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण होता है।” क्या आप इस विचार से सहमत है? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
हाँ, मैं इस विचार से पूर्णतः सहमत हूँ कि असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण होता है। इसके समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं:

  • कम मजदूरी: असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों को अक्सर न्यूनतम मजदूरी से भी कम भुगतान किया जाता है। उन्हें उचित वेतन वृद्धि या भत्ते नहीं मिलते।

  • अनिश्चित रोजगार: इस क्षेत्र में नौकरियों की सुरक्षा नहीं होती। श्रमिकों को कभी भी बिना किसी पूर्व सूचना या मुआवजे के काम से निकाला जा सकता है।

  • खराब कार्य परिस्थितियाँ: कार्यस्थल अक्सर असुरक्षित और अस्वच्छ होते हैं। सुरक्षा उपकरणों की कमी होती है, और काम के घंटे बहुत लंबे होते हैं।

  • सामाजिक सुरक्षा का अभाव: असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को भविष्य निधि, ग्रेच्युटी, चिकित्सा अवकाश, बीमारी अवकाश, मातृत्व अवकाश या पेंशन जैसी कोई सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं मिलते।

  • यूनियन बनाने का अधिकार नहीं: श्रमिकों को अक्सर यूनियन बनाने या सामूहिक रूप से अपनी मांगों को रखने की अनुमति नहीं होती, जिससे उनकी सौदेबाजी की शक्ति कम हो जाती है।

  • बच्चों और महिलाओं का शोषण: इस क्षेत्र में बाल श्रम और महिलाओं का अधिक शोषण होता है, जहाँ उन्हें कम मजदूरी पर कठिन काम करवाया जाता है।

  • सरकारी नियमों की अनदेखी: असंगठित क्षेत्र में सरकारी नियमों और कानूनों का अक्सर पालन नहीं किया जाता, क्योंकि इस पर सरकार का सीधा नियंत्रण नहीं होता।

ये सभी कारक मिलकर असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के शोषण का कारण बनते हैं, जिससे उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति कमजोर बनी रहती है।

36. “एक के लिए जो विकास है वह दूसरे के लिए विकास न हो। यहाँ तक कि वह दूसरे के लिए विनाशकारी भी हो सकता है।” उचित उदाहरणों द्वारा कथन की पुष्टि कीजिए।
यह कथन विकास की विरोधाभासी प्रकृति को दर्शाता है, जहाँ एक समूह या क्षेत्र का विकास दूसरे के लिए नकारात्मक परिणाम ला सकता है। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  1. बांधों का निर्माण:

    • विकास (एक के लिए): बड़े बांधों का निर्माण बिजली उत्पादन, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण में मदद करता है, जिससे उद्योग, कृषि और शहरी क्षेत्रों का विकास होता है।

    • विनाशकारी (दूसरे के लिए): बांधों के निर्माण से बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों, खासकर आदिवासियों और किसानों को अपनी जमीन और घरों से विस्थापित होना पड़ता है। उनके आजीविका के साधन छिन जाते हैं और उन्हें नए स्थानों पर संघर्ष करना पड़ता है। पर्यावरण को भी नुकसान होता है, जैसे वनों का विनाश और जैव विविधता का नुकसान।

  2. शहरीकरण और औद्योगिक विकास:

    • विकास (एक के लिए): शहरों का विकास और नए उद्योगों की स्थापना रोजगार के अवसर पैदा करती है, आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है और बेहतर जीवन शैली प्रदान करती है।

    • विनाशकारी (दूसरे के लिए): औद्योगिक प्रदूषण (वायु, जल, ध्वनि) आस-पास के ग्रामीण और शहरी निवासियों के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। औद्योगिक अपशिष्ट नदियों और कृषि भूमि को दूषित करते हैं, जिससे किसानों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।

  3. खनन परियोजनाएँ:

    • विकास (एक के लिए): खनन से खनिज संसाधनों की आपूर्ति होती है, जो उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण हैं और निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जित करते हैं। यह सरकार के लिए राजस्व का स्रोत है।

    • विनाशकारी (दूसरे के लिए): खनन से बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, भूमि का क्षरण, भूजल का प्रदूषण और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश होता है। इससे खनन क्षेत्रों के पास रहने वाले आदिवासियों और ग्रामीण समुदायों की पारंपरिक आजीविका और सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ जाती है।

ये उदाहरण स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि विकास अक्सर एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया होती है, जिसके लाभ और लागत सभी वर्गों पर समान रूप से वितरित नहीं होते, और कभी-कभी एक के लिए ‘विकास’ दूसरे के लिए ‘विनाश’ बन जाता है।

37. संगठित क्षेत्रक व असंगठित क्षेत्रक की तुलना कीजिए।
संगठित क्षेत्रक (Organised Sector) | असंगठित क्षेत्रक (Unorganised Sector)
———————————–|————————————–

  • पंजीकरण: सरकार द्वारा पंजीकृत होता है और सरकारी नियमों का पालन करता है। | * पंजीकरण: आमतौर पर सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं होता।

  • नियम व शर्तें: रोजगार की शर्तें नियमित होती हैं। | * नियम व शर्तें: रोजगार की शर्तें अनियमित होती हैं।

  • नौकरी सुरक्षा: नौकरी सुरक्षित होती है; कर्मचारियों को बिना किसी कारण के नहीं निकाला जा सकता। | * नौकरी सुरक्षा: नौकरी असुरक्षित होती है; कर्मचारियों को कभी भी निकाला जा सकता है।

  • कार्य अवधि: कार्य के घंटे निश्चित होते हैं; ओवरटाइम के लिए अतिरिक्त भुगतान मिलता है। | * कार्य अवधि: काम के घंटे निश्चित नहीं होते; अक्सर बहुत लंबे होते हैं और ओवरटाइम का भुगतान नहीं होता।

  • सामाजिक सुरक्षा: कर्मचारी भविष्य निधि (PF), ग्रेच्युटी, बीमारी/मातृत्व अवकाश, पेंशन आदि जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभ मिलते हैं। | * सामाजिक सुरक्षा: कोई सामाजिक सुरक्षा लाभ (PF, ग्रेच्युटी, अवकाश, पेंशन) नहीं मिलते।

  • वेतन: मजदूरी निश्चित और अक्सर न्यूनतम मजदूरी से अधिक होती है। | * वेतन: मजदूरी कम होती है और अक्सर न्यूनतम मजदूरी से भी कम होती है।

  • लाभ: वेतन के साथ-साथ अन्य भत्ते (जैसे चिकित्सा भत्ता) भी मिलते हैं। | * लाभ: कोई अतिरिक्त भत्ते या सुविधाएँ नहीं मिलतीं।

  • काम करने की स्थिति: कार्यस्थल सुरक्षित और स्वस्थ होते हैं। | * काम करने की स्थिति: कार्यस्थल अक्सर असुरक्षित और अस्वच्छ होते हैं।

  • उदाहरण: बैंक, सरकारी अस्पताल, स्कूल, बड़ी कंपनियाँ। | * उदाहरण: कृषि श्रमिक, निर्माण श्रमिक, घरेलू नौकर, छोटे दुकानदार।

अथवा

अर्थव्यवस्था के निजी क्षेत्रक एवं सार्वजनिक क्षेत्रक के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए।
निजी क्षेत्रक (Private Sector) | सार्वजनिक क्षेत्रक (Public Sector)
———————————|———————————

  • स्वामित्व: परिसंपत्तियों का स्वामित्व और सेवाओं का वितरण एक व्यक्ति या कंपनी के हाथों में होता है। | * स्वामित्व: परिसंपत्तियों का स्वामित्व और सेवाओं का वितरण सरकार के हाथों में होता है।

  • मुख्य उद्देश्य: मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है। | * मुख्य उद्देश्य: मुख्य उद्देश्य जन कल्याण और सामाजिक लाभ प्रदान करना होता है।

  • मूल्य निर्धारण: वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें मांग और आपूर्ति के आधार पर निर्धारित होती हैं। | * मूल्य निर्धारण: वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें सरकार द्वारा निर्धारित की जाती हैं, जो अक्सर लागत से कम होती हैं ताकि सभी को सस्ती दरों पर उपलब्ध हों।

  • रोजगार सुरक्षा: रोजगार की सुरक्षा लाभप्रदता पर निर्भर करती है; अक्सर कम होती है। | * रोजगार सुरक्षा: रोजगार अधिक सुरक्षित होता है और सरकारी नियमों द्वारा संरक्षित होता है।

  • सामाजिक सुरक्षा: कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा लाभ (PF, बीमा आदि) मिलते हैं, लेकिन वे लाभ निजी क्षेत्र की नीतियों के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। | * सामाजिक सुरक्षा: कर्मचारियों को व्यापक सामाजिक सुरक्षा और पेंशन लाभ मिलते हैं।

  • सेवाएँ: आमतौर पर ऐसी सेवाएँ प्रदान करता है जिनकी उपभोक्ता सीधे खरीद करते हैं। | * सेवाएँ: बुनियादी सेवाएँ और अवसंरचना (जैसे रेलवे, अस्पताल, शिक्षा, बिजली) प्रदान करता है जो सभी नागरिकों के लिए आवश्यक हैं।

  • उदाहरण: रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा मोटर्स, विभिन्न निजी बैंक, एयरलाइन कंपनियाँ। | * उदाहरण: भारतीय रेलवे, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), भारतीय स्टेट बैंक, भारतीय डाक।

38. दिए गए अनुच्छेद को पढ़िए एवं प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(अनुच्छेद यहाँ दोहराया नहीं जा रहा है, सीधे प्रश्नों के उत्तर दिए जा रहे हैं।)

38.1: अर्थव्यवस्था का तृतीयक क्षेत्रक किसे कहते है?
अर्थव्यवस्था का तृतीयक क्षेत्रक (Tertiary Sector), जिसे सेवा क्षेत्रक भी कहते हैं, उन गतिविधियों को शामिल करता है जो प्राथमिक (कृषि, खनन) और द्वितीयक (विनिर्माण) क्षेत्रकों के विकास में मदद करती हैं। यह स्वयं वस्तुओं का उत्पादन नहीं करता, बल्कि उत्पादन प्रक्रिया में सहायता करता है और सेवाएँ प्रदान करता है।

38.2: तृतीयक क्षेत्रक का एक उदाहरण दीजिए।
तृतीयक क्षेत्रक का एक उदाहरण परिवहन है। (अन्य उदाहरण: भंडारण, संचार, बैंकिंग सेवाएँ, शिक्षक, डॉक्टर आदि।)

38.3: तृतीयक क्षेत्रक हाल के दिनों में क्यों महत्वपूर्ण होता जा रहा है?
तृतीयक क्षेत्रक हाल के दिनों में कई कारणों से महत्वपूर्ण होता जा रहा है:

  1. बुनियादी सेवाओं की आवश्यकता में वृद्धि: किसी भी देश के विकास के लिए अस्पताल, शैक्षिक संस्थान, डाक और तार सेवाएँ, पुलिस स्टेशन, कचहरी, ग्राम प्रशासनिक कार्यालय, रक्षा, परिवहन, बैंक, बीमा कंपनियाँ जैसी बुनियादी सेवाओं की आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे आय बढ़ती है, इन सेवाओं की मांग बढ़ती है।

  2. प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रकों का विकास: प्राथमिक (कृषि) और द्वितीयक (उद्योग) क्षेत्रकों के विकास के लिए तृतीयक क्षेत्रक की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, परिवहन (कच्चा माल लाने और तैयार माल ले जाने के लिए), भंडारण (उत्पादों को सुरक्षित रखने के लिए), और बैंकिंग (वित्तपोषण के लिए) जैसी सेवाएँ उद्योगों और कृषि के लिए अनिवार्य हैं।

  3. आय स्तर में वृद्धि: जैसे-जैसे लोगों की आय बढ़ती है, वे अधिक सेवाओं की मांग करते हैं, जैसे पर्यटन, शॉपिंग, निजी अस्पताल, निजी स्कूल, व्यावसायिक प्रशिक्षण आदि।

  4. नई सेवाओं का उदय: सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और संचार (Communication) जैसी नई सेवाएँ, जैसे इंटरनेट कैफे, ATM बूथ, कॉल सेंटर, सॉफ्टवेयर कंपनियाँ, हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी हैं, जिससे इस क्षेत्र का महत्व और बढ़ गया है।

  5. वैश्वीकरण और विशेषज्ञता: वैश्वीकरण के कारण विभिन्न देशों के बीच सेवाओं का आदान-प्रदान बढ़ा है। साथ ही, विशेषज्ञता और कौशल आधारित सेवाओं (जैसे परामर्श, अनुसंधान) की मांग बढ़ी है।

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