MID TERM SCIENCE PAPER XTH CLASS -PRACTICE PAPER 25-26

खंड क (जीव विज्ञान)

1. पौधों में भोजन के परिवहन के लिए कौन-सी प्रक्रिया उत्तरदायी है?
A. प्रकाश संश्लेषण
B. श्वसन
C. वाष्पोत्सर्जन
D. स्थानांतरण

सही उत्तर: D. स्थानांतरण
व्याख्या: पौधों में प्रकाश संश्लेषण द्वारा पत्तियों में बने भोजन को पौधे के विभिन्न भागों तक पहुँचाने की प्रक्रिया को स्थानांतरण कहते हैं।

2. एक व्यक्ति गलती से किसी गर्म वस्तु को छूता है और तुरंत हाथ पीछे खींच लेता है। यह किसका उदाहरण है?
A. अनैच्छिक क्रिया
B. हार्मोनल क्रिया
C. ऐच्छिक क्रिया
D. प्रतिवर्ती क्रिया

सही उत्तर: D. प्रतिवर्ती क्रिया
व्याख्या: प्रतिवर्ती क्रियाएँ वे क्रियाएँ होती हैं जो बिना सोचे-समझे, स्वतः और तेजी से होती हैं, जैसे गर्म वस्तु से हाथ हटाना।

3. इनमें से किस के पास खाद्य श्रृंखला में सबसे कम ऊर्जा उपलब्ध होगी?
A. उत्पादक
B. द्वितीयक उपभोक्ता
C. प्राथमिक उपभोक्ता
D. तृतीयक उपभोक्ता

सही उत्तर: D. तृतीयक उपभोक्ता
व्याख्या: खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा का स्थानांतरण एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर तक होता है, जिसमें प्रत्येक स्तर पर लगभग 10% ऊर्जा ही अगले स्तर तक पहुँचती है। इसलिए, तृतीयक उपभोक्ता के पास सबसे कम ऊर्जा उपलब्ध होगी।

4. रंध्र कब खुलता है?
A. जैसे ही जल उनमें प्रवेश करता है, द्वार कोशिकाएँ फूल जाती हैं।
B. जैसे ही जल बाहर निकलता है, द्वार कोशिकाएँ सिकुड़ जाती हैं।
C. जैसे ही जल बाहर निकलता है, द्वार कोशिकाएँ फूल जाती हैं।
D. जैसे ही जल उनमें प्रवेश करता है, द्वार कोशिकाएँ सिकुड़ जाती हैं।

सही उत्तर: A. जैसे ही जल उनमें प्रवेश करता है, द्वार कोशिकाएँ फूल जाती हैं।
व्याख्या: जब द्वार कोशिकाओं में जल प्रवेश करता है, तो वे फूल जाती हैं और रंध्र खुल जाते हैं। जब जल बाहर निकलता है, तो वे सिकुड़ जाती हैं और रंध्र बंद हो जाते हैं।

5. मानव में रस संवेदीग्राही और घ्राणग्राही क्रमशः कहाँ पाए जाते हैं?
A. त्वचा और जीभ में
B. नासिका गुहा और आँखों में
C. जीभ और नासिका गुहा में
D. जीभ और त्वचा में

सही उत्तर: C. जीभ और नासिका गुहा में
व्याख्या: रस संवेदीग्राही (स्वाद कलिकाएं) जीभ में पाई जाती हैं, और घ्राणग्राही (गंध के लिए) नासिका गुहा (नाक) में पाई जाती हैं।

6. मस्तिष्क का कौन-सा भाग ऐच्छिक क्रियाओं की परिशुद्धि तथा शरीर की संस्थिति और संतुलन बनाए रखने के लिए उत्तरदायी है?
A. मेडुला
B. हाइपोथैलेमस
C. प्रमस्तिष्क
D. अनुमस्तिष्क

सही उत्तर: D. अनुमस्तिष्क
व्याख्या: अनुमस्तिष्क (सेरिबेलम) ऐच्छिक गतियों जैसे चलना, पेंसिल उठाना आदि को नियंत्रित करता है और शरीर का संतुलन बनाए रखता है।

7. पारितंत्र से संबंधित सही कथन कौन से हैं?
(i) पारितंत्र जैविक और अजैविक घटकों से मिलकर बना होता है।
(ii) बगीचा और फसल का खेत मानव निर्मित पारितंत्र हैं।
(iii) पारितंत्र के जैविक घटकों में वायु, मृदा आदि भौतिक घटक आते हैं।
(iv) वन, तालाब और झीलें कृत्रिम पारितंत्र हैं।
(v) पारितंत्र के जैविक और अजैविक घटक एक-दूसरे के साथ अन्योन्य क्रिया करते हैं।

A. (i), (ii), (v)
B. (ii), (iv), (v)
C. (i), (iii), (iv)
D. (i), (iv), (v)

सही उत्तर: A. (i), (ii), (v)
व्याख्या:

  • (i) सही है, पारितंत्र जैविक (जीवित) और अजैविक (निर्जीव) घटकों का मिश्रण होता है।

  • (ii) सही है, बगीचे और खेत मानव द्वारा बनाए गए पारितंत्र हैं।

  • (iii) गलत है, वायु और मृदा अजैविक घटक हैं, जैविक नहीं।

  • (iv) गलत है, वन, तालाब और झीलें प्राकृतिक पारितंत्र हैं।

  • (v) सही है, जैविक और अजैविक घटक आपस में क्रिया करते हैं।

8. निम्नलिखित प्रश्न में अभिकथन (A) और कारण (R) दिए गए हैं। सही विकल्प चुनिएः
अभिकथन (A): वायुमंडल के ऊपरी स्तर पर ओजोन की उपस्थिति जीवों के लिए लाभदायक है।
कारण (R): ओजोन पृथ्वी की सतह को सूर्य की पराबैंगनी विकिरणों से सुरक्षित रखता है।

A. A और R दोनों सत्य हैं, और R, A की सही व्याख्या है।
B. A और R दोनों सत्य हैं, परंतु R, A की सही व्याख्या नहीं है।
C. A सत्य है, पर R असत्य है।
D. A असत्य है, पर R सत्य है।

सही उत्तर: A. A और R दोनों सत्य हैं, और R, A की सही व्याख्या है।
व्याख्या: ओजोन परत पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी तक पहुँचने से रोकती है, जो जीवों के लिए हानिकारक होती हैं।

9. निम्नलिखित प्रश्न में अभिकथन (A) और कारण (R) दिए गए हैं। सही विकल्प चुनिए:
अभिकथन (A): स्वपोषी जीवों की ऊर्जा आवश्यकता प्रकाश संश्लेषण द्वारा पूरी होती है।
कारण (R): कार्बन डाइऑक्साइड उपचयित होकर कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करता है।

A. A और R दोनों सत्य हैं, और R, A की सही व्याख्या है।
B. A और R दोनों सत्य हैं, परंतु R, A की सही व्याख्या नहीं है।
C. A सत्य है, पर R असत्य है।
D. A असत्य है, पर R सत्य है।

सही उत्तर: A. A और R दोनों सत्य हैं, और R, A की सही व्याख्या है।
व्याख्या: स्वपोषी जीव प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन बनाते हैं, जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करके कार्बोहाइड्रेट (ऊर्जा) का निर्माण होता है।

10. धनात्मक गुरुत्वानुवर्तन, ऋणात्मक गुरुत्वानुवर्तन से कैसे भिन्न है? उपयुक्त उदाहरण की सहायता से समझाइए।

उत्तर:
गुरुत्वानुवर्तन (Geotropism): पौधों के अंगों की वृद्धि पर गुरुत्वाकर्षण बल का प्रभाव गुरुत्वानुवर्तन कहलाता है।

  • धनात्मक गुरुत्वानुवर्तन (Positive Geotropism): जब पौधे का कोई भाग गुरुत्वाकर्षण बल की दिशा में वृद्धि करता है, तो इसे धनात्मक गुरुत्वानुवर्तन कहते हैं।

    • उदाहरण: पौधे की जड़ें हमेशा नीचे, यानी गुरुत्वाकर्षण बल की दिशा में बढ़ती हैं।

  • ऋणात्मक गुरुत्वानुवर्तन (Negative Geotropism): जब पौधे का कोई भाग गुरुत्वाकर्षण बल की विपरीत दिशा में वृद्धि करता है, तो इसे ऋणात्मक गुरुत्वानुवर्तन कहते हैं।

    • उदाहरण: पौधे का तना हमेशा ऊपर की ओर, यानी गुरुत्वाकर्षण बल के विपरीत दिशा में बढ़ता है।

11. A या B में से एक का एक उत्तर दीजिए।
A. अमीबा द्वारा भोजन ग्रहण एवं पाचन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए । यह किस प्रकार की पोषण विधि को दर्शाता है?

उत्तर:
अमीबा एक एककोशिकीय जीव है जो होलोजोइक (प्राणि सम) पोषण विधि को दर्शाता है। इसमें भोजन ग्रहण, पाचन, अवशोषण और बहिष्करण शामिल है।

  1. भोजन ग्रहण (Ingestion): अमीबा अपने भोजन (जैसे छोटे शैवाल, जीवाणु या अन्य छोटे जीव) को अपनी सतह पर मौजूद कूटपादों (pseudopodia) की सहायता से घेरता है। ये कूटपाद भोजन के कण के चारों ओर बढ़ते हैं और उसे पूरी तरह से घेर लेते हैं, जिससे एक खाद्य धानी (food vacuole) का निर्माण होता है।

  2. पाचन (Digestion): खाद्य धानी के अंदर, लाइसोसोम नामक पाचक एंजाइम स्रावित होते हैं। ये एंजाइम जटिल खाद्य पदार्थों को सरल, घुलनशील पदार्थों में तोड़ देते हैं।

  3. अवशोषण (Absorption): पचित भोजन खाद्य धानी से कोशिकाद्रव्य में विसरित हो जाता है और अमीबा की वृद्धि तथा अन्य उपापचयी गतिविधियों के लिए उपयोग किया जाता है।

  4. बहिष्करण (Egestion): अपचित भोजन खाद्य धानी में रहता है। यह खाद्य धानी धीरे-धीरे कोशिका की सतह की ओर बढ़ती है, फट जाती है, और अपचित भोजन को शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।

यह प्राणि सम (Holozoic) पोषण विधि को दर्शाता है।

अथवा

B. अग्न्याशयी रस में उपस्थित किन्ही दो पाचक एन्जाइमों के नाम लिखिए तथा उनके मुख्य कार्य बताइए।

उत्तर:
अग्न्याशयी रस (Pancreatic juice) में कई पाचक एन्जाइम होते हैं। किन्हीं दो एन्जाइमों के नाम और उनके कार्य निम्नलिखित हैं:

  1. एमाइलेज (Amylase):

    • कार्य: यह कार्बोहाइड्रेट (विशेषकर स्टार्च) का पाचन करता है, उन्हें माल्टोज जैसे सरल शर्करा में तोड़ता है।

  2. ट्रिप्सिन (Trypsin):

    • कार्य: यह प्रोटीन और पेप्टोन का पाचन करता है, उन्हें छोटे पेप्टाइड और अमीनो अम्ल में तोड़ता है। यह अग्न्याशय से निष्क्रिय ट्रिप्सिनोजन के रूप में स्रावित होता है और छोटी आँत में सक्रिय ट्रिप्सिन में बदल जाता है।

  3. लाइपेज (Lipase):

    • कार्य: यह वसा का पाचन करता है, उन्हें वसीय अम्ल और ग्लिसरॉल में तोड़ता है।

12. “ऊर्जा का प्रवाह खाद्य श्रृंखला में एकदिशात्मक होता है।” चार पोषी स्तर वाली एक स्थलीय खाद्य श्रृंखला का निरूपण कर उपरोक्त कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर:
ऊर्जा का एकदिशात्मक प्रवाह:
खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा का प्रवाह हमेशा एक ही दिशा में होता है, यानी उत्पादकों से उपभोक्ताओं की ओर। यह कभी भी विपरीत दिशा में नहीं होता, और न ही यह ऊर्जा निचले पोषी स्तरों पर वापस लौटती है। प्रत्येक पोषी स्तर पर ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा (लगभग 90%) जैविक प्रक्रियाओं, ऊष्मा के रूप में हानि और अपचित भोजन के रूप में नष्ट हो जाता है, और केवल लगभग 10% ऊर्जा ही अगले पोषी स्तर तक पहुँच पाती है (10% नियम)।

चार पोषी स्तर वाली एक स्थलीय खाद्य श्रृंखला का निरूपण:

  1. पहला पोषी स्तर (उत्पादक): घास

    • ये स्वपोषी होते हैं जो सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन बनाते हैं। यह खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है।

  2. दूसरा पोषी स्तर (प्राथमिक उपभोक्ता / शाकाहारी): टिड्डा

    • टिड्डा घास खाता है। घास में संचित ऊर्जा का केवल लगभग 10% ही टिड्डे को प्राप्त होता है।

  3. तीसरा पोषी स्तर (द्वितीयक उपभोक्ता / मांसाहारी): मेंढक

    • मेंढक टिड्डे को खाता है। टिड्डे में संचित ऊर्जा का केवल लगभग 10% ही मेंढक को प्राप्त होता है।

  4. चौथा पोषी स्तर (तृतीयक उपभोक्ता / उच्च मांसाहारी): साँप

    • साँप मेंढक को खाता है। मेंढक में संचित ऊर्जा का केवल लगभग 10% ही साँप को प्राप्त होता है।

पुष्टि:
इस खाद्य श्रृंखला में, ऊर्जा घास से टिड्डे में, टिड्डे से मेंढक में, और मेंढक से साँप में प्रवाहित होती है। ऊर्जा का प्रवाह केवल एक दिशा में होता है (→)। साँप से ऊर्जा वापस मेंढक, टिड्डे या घास में नहीं जा सकती। प्रत्येक स्तर पर ऊर्जा की हानि के कारण, उच्च पोषी स्तरों पर उपलब्ध ऊर्जा की मात्रा कम होती जाती है, जो एकदिशात्मक प्रवाह का स्पष्ट प्रमाण है।

13. पादप हार्मोन क्या हैं? निम्नलिखित के लिए उत्तरदायी पादप हार्मोन का नाम लिखिए:
(i) वृद्धि का अवरोध
(ii) तने की वृद्धि
(iii) कोशिका विभाजन में सहायक
(iv) सहारे के चारों ओर लता का बढ़ना

उत्तर:
पादप हार्मोन (Plant Hormones / Phytohormones):
पादप हार्मोन वे रासायनिक पदार्थ होते हैं जो पौधों में बहुत कम मात्रा में संश्लेषित होते हैं और उनकी वृद्धि, विकास, पुष्पन, फल-निर्माण, पत्ती-झड़न और विभिन्न पर्यावरण प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।

निम्नलिखित के लिए उत्तरदायी पादप हार्मोन के नाम:

(i) वृद्धि का अवरोध: एब्सिसिक अम्ल (Abscisic Acid – ABA)
(ii) तने की वृद्धि: ऑक्सिन (Auxin) और जिबरेलिन (Gibberellin) (मुख्य रूप से ऑक्सिन तने के शीर्ष पर वृद्धि करता है, जबकि जिबरेलिन तने की लंबाई बढ़ाता है।)
(iii) कोशिका विभाजन में सहायक: साइटोकाइनिन (Cytokinin)
(iv) सहारे के चारों ओर लता का बढ़ना: ऑक्सिन (Auxin) (प्रतान (tendrils) की स्पर्शानुवर्तन गति में ऑक्सिन की भूमिका होती है।)

14. A. मानव शरीर में विभिन्न परिस्थितियों में ग्लूकोज़ के विखंडन द्वारा ऊर्जा प्रदान करने के लिए दो विधियों का वर्णन कीजिए और प्रत्येक स्थिति के अंत उत्पादों को बताइए ।

उत्तर:
मानव शरीर में ग्लूकोज़ के विखंडन द्वारा ऊर्जा प्राप्त करने की मुख्य रूप से दो विधियाँ हैं:

  1. ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज़ का विखंडन (वायवीय श्वसन – Aerobic Respiration):

    • कब होता है: यह सामान्य रूप से कोशिकाओं में तब होता है जब पर्याप्त ऑक्सीजन उपलब्ध होती है।

    • प्रक्रिया: ग्लूकोज़ (6 कार्बन अणु) पहले कोशिका द्रव्य में पाइरुवेट (3 कार्बन अणु) में टूटता है। इसके बाद, पाइरुवेट माइटोकॉन्ड्रिया में ऑक्सीजन की उपस्थिति में पूरी तरह से कार्बन डाइऑक्साइड और जल में टूट जाता है।

    • अंत उत्पाद: कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), जल (H2O), और बड़ी मात्रा में ऊर्जा (लगभग 38 ATP अणु)।

    • समीकरण:
      ग्लूकोज़ + ऑक्सीजन → कार्बन डाइऑक्साइड + जल + ऊर्जा

  2. ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ग्लूकोज़ का विखंडन (अवायवीय श्वसन – Anaerobic Respiration):

    • कब होता है: यह तब होता है जब कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी होती है, जैसे कि तीव्र शारीरिक गतिविधि (व्यायाम) के दौरान मांसपेशियों की कोशिकाओं में।

    • प्रक्रिया: ग्लूकोज़ (6 कार्बन अणु) पहले कोशिका द्रव्य में पाइरुवेट (3 कार्बन अणु) में टूटता है। इसके बाद, पाइरुवेट ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में लैक्टिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है।

    • अंत उत्पाद: लैक्टिक अम्ल (Lactic Acid), और कम मात्रा में ऊर्जा (लगभग 2 ATP अणु)।

    • समीकरण:
      ग्लूकोज़ → लैक्टिक अम्ल + ऊर्जा (मांसपेशी कोशिकाओं में)

    • ध्यान दें: यह लैक्टिक अम्ल मांसपेशियों में ऐंठन (cramps) का कारण बनता है।

B. मानव शरीर में ऑक्सीजन का परिवहन का तरीका, कार्बन डाइऑक्साइड के परिवहन से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर:
मानव शरीर में ऑक्सीजन (O2) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) दोनों का परिवहन रक्त द्वारा होता है, लेकिन उनके तरीके भिन्न होते हैं:

ऑक्सीजन का परिवहन:

  1. हीमोग्लोबिन द्वारा (मुख्य तरीका): अधिकांश ऑक्सीजन (लगभग 97-98%) लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) में पाए जाने वाले हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) नामक वर्णक से जुड़कर ऑक्सीहीमोग्लोबिन (Oxyhaemoglobin) के रूप में फेफड़ों से ऊतकों तक पहुँचाई जाती है। हीमोग्लोबिन में चार हीम समूह होते हैं, और प्रत्येक हीम समूह एक ऑक्सीजन अणु से बंध सकता है।

  2. प्लाज्मा में घुली अवस्था में: बहुत कम मात्रा में ऑक्सीजन (लगभग 2-3%) रक्त प्लाज्मा में घुलित अवस्था में परिवहन करती है।

कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन:

  1. बाईकार्बोनेट आयनों के रूप में (मुख्य तरीका): अधिकांश कार्बन डाइऑक्साइड (लगभग 70%) प्लाज्मा और लाल रक्त कोशिकाओं में बाईकार्बोनेट आयनों (Bicarbonate ions, HCO3-) के रूप में परिवहन करती है। CO2 जल के साथ मिलकर कार्बोनिक अम्ल बनाती है, जो तुरंत बाईकार्बोनेट आयनों में टूट जाता है।

  2. हीमोग्लोबिन द्वारा (कार्बामिनोहीमोग्लोबिन): लगभग 20-25% कार्बन डाइऑक्साइड हीमोग्लोबिन के साथ मिलकर कार्बामिनोहीमोग्लोबिन (Carbaminohaemoglobin) के रूप में परिवहन करती है। यह ऑक्सीजन के विपरीत, हीमोग्लोबिन के एमिनो समूहों से जुड़ती है।

  3. प्लाज्मा में घुली अवस्था में: लगभग 5-10% कार्बन डाइऑक्साइड सीधे रक्त प्लाज्मा में घुलित अवस्था में परिवहन करती है।

मुख्य अंतर:

  • वाहक अणु: ऑक्सीजन का मुख्य वाहक हीमोग्लोबिन है, जबकि कार्बन डाइऑक्साइड का मुख्य वाहक बाईकार्बोनेट आयन हैं।

  • परिवहन का रूप: ऑक्सीजन ऑक्सीहीमोग्लोबिन के रूप में परिवहन करती है, जबकि कार्बन डाइऑक्साइड बाईकार्बोनेट आयन, कार्बामिनोहीमोग्लोबिन और घुलित अवस्था तीनों में परिवहन करती है, जिसमें बाईकार्बोनेट आयन प्रमुख हैं।

  • बंधित होने का स्थान (हीमोग्लोबिन पर): ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन के आयरन (हीम) भाग से जुड़ती है, जबकि कार्बन डाइऑक्साइड हीमोग्लोबिन के प्रोटीन (ग्लोबिन) भाग के एमिनो समूहों से जुड़ती है।

15. विज्ञान कक्षा में छात्रों ने सीखा कि मानव में हार्मोन का स्तर पुनर्भरण क्रियाविधि द्वारा नियंत्रित होता है।
उपभाग A या B में से एक का एक उत्तर दीजिए ।
A. मानव शरीर में पुनर्भरण क्रियाविधि तंत्र का महत्व बताइए।

उत्तर:
मानव शरीर में पुनर्भरण क्रियाविधि तंत्र (Feedback Mechanism) का महत्व:

पुनर्भरण क्रियाविधि शरीर में हार्मोनल संतुलन (होमोस्टेसिस) बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण नियामक तंत्र है। यह तंत्र यह सुनिश्चित करता है कि हार्मोन का स्राव न तो बहुत अधिक हो और न ही बहुत कम, बल्कि शरीर की आवश्यकताओं के अनुसार इष्टतम स्तर पर बना रहे। इसके महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:

  1. हार्मोनल संतुलन बनाए रखना: यह शरीर में विभिन्न हार्मोन के स्तर को नियंत्रित करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि वे एक संकीर्ण, सामान्य सीमा के भीतर रहें। उदाहरण के लिए, रक्त शर्करा का नियंत्रण इंसुलिन और ग्लूकागन के पुनर्भरण तंत्र द्वारा होता है।

  2. शरीर के कार्यों का समन्वय: यह विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं जैसे चयापचय, वृद्धि, प्रजनन, तनाव प्रतिक्रिया आदि को कुशलता से समन्वित करता है।

  3. अत्यधिक या अपर्याप्त स्राव को रोकना: यह तंत्र हार्मोन के स्राव को तब बढ़ा देता है जब उनका स्तर कम होता है (सकारात्मक पुनर्भरण) और तब कम कर देता है जब उनका स्तर अधिक होता है (नकारात्मक पुनर्भरण)।

    • नकारात्मक पुनर्भरण (Negative Feedback): यह सबसे सामान्य प्रकार का पुनर्भरण है। इसमें, जब किसी हार्मोन का स्तर एक निश्चित सीमा से बढ़ जाता है, तो यह आगे उसके स्राव को रोकने के लिए संकेत भेजता है, जिससे उसका स्तर कम हो जाता है। उदाहरण: थायराइड हार्मोन का नियंत्रण।

    • सकारात्मक पुनर्भरण (Positive Feedback): यह कम सामान्य है। इसमें, किसी हार्मोन का स्तर बढ़ने पर वह अपने ही स्राव को और बढ़ाता है। यह आमतौर पर तीव्र घटनाओं जैसे बच्चे के जन्म के दौरान ऑक्सीटोसिन के स्राव में देखा जाता है।

  4. रोगों से बचाव: पुनर्भरण तंत्र की विफलता से हार्मोनल असंतुलन हो सकता है, जिससे मधुमेह, थायराइड रोग और अन्य अंतःस्रावी विकार जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं। यह तंत्र इन बीमारियों की रोकथाम में मदद करता है।

  5. पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति अनुकूलन: यह शरीर को आंतरिक और बाहरी पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति अनुकूलन करने में मदद करता है, जिससे शरीर की आंतरिक स्थिरता बनी रहती है।

संक्षेप में, पुनर्भरण क्रियाविधि शरीर को गतिशील संतुलन में रखने, उसके कार्यों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने और स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है।

अथवा

B. जंतुओं में हार्मोनल नियंत्रण और समन्वय की प्रणाली, तंत्रिका नियंत्रण से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर:
जंतुओं में नियंत्रण और समन्वय के लिए दो मुख्य प्रणालियाँ होती हैं: तंत्रिका नियंत्रण और हार्मोनल (अंतःस्रावी) नियंत्रण। वे निम्नलिखित तरीकों से भिन्न होती हैं:

विशेषतातंत्रिका नियंत्रण (Nervous Control)हार्मोनल नियंत्रण (Hormonal/Endocrine Control)
संचार माध्यमन्यूरॉन्स (तंत्रिका कोशिकाएँ) द्वारा विद्युत आवेग।रक्त के माध्यम से हार्मोन (रासायनिक संदेशवाहक)।
प्रकृतिविद्युत-रासायनिक।विशुद्ध रूप से रासायनिक।
गतिबहुत तीव्र। संदेश कुछ मिलीसेकंड में लक्ष्य तक पहुँच जाते हैं।धीमा। हार्मोन को रक्त के माध्यम से यात्रा करने में समय लगता है।
प्रतिक्रियातीव्र और तत्काल।धीमी, लेकिन अक्सर दीर्घकालिक।
प्रभाव की अवधिआमतौर पर कम समय के लिए (क्षणिक)।आमतौर पर लंबे समय तक (दीर्घकालिक)।
लक्ष्यविशिष्ट कोशिकाएँ, ग्रंथियाँ, या मांसपेशियाँ।शरीर की कई कोशिकाएँ, ऊतक, या अंग जिनके पास विशिष्ट हार्मोन के लिए रिसेप्टर होते हैं।
पुनर्भरणतंत्रिका पथों के माध्यम से होता है।हार्मोन के स्तर और शारीरिक प्रतिक्रियाओं द्वारा होता है।
उदाहरणगर्म वस्तु से हाथ हटाना, मांसपेशियों की गति, सोचने की प्रक्रिया।वृद्धि, विकास, उपापचय, प्रजनन, रक्त शर्करा का नियंत्रण।

संक्षेप में, तंत्रिका नियंत्रण तीव्र, अल्पकालिक और विशिष्ट प्रतिक्रियाओं के लिए उपयुक्त है, जबकि हार्मोनल नियंत्रण धीमी, दीर्घकालिक और व्यापक शारीरिक प्रक्रियाओं के लिए उपयुक्त है। दोनों प्रणालियाँ मिलकर शरीर में समन्वय और संतुलन बनाए रखती हैं।

C. रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ने पर अग्न्याशय द्वारा स्रावित हार्मोन का नाम लिखिए।

उत्तर:
रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ने पर अग्न्याशय द्वारा स्रावित हार्मोन का नाम इंसुलिन (Insulin) है।

D. अधिवृक्क ग्रंथि द्वारा स्रावित किसी एक हार्मोन का नाम लिखिए तथा उसका मुख्य कार्य बताइए।

उत्तर:
अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland) द्वारा स्रावित एक हार्मोन का नाम एड्रेनलिन (Adrenaline) (जिसे एपिनेफ्रीन भी कहते हैं) है।

मुख्य कार्य:
एड्रेनलिन को “लड़ो या भागो” (fight or flight) हार्मोन के रूप में जाना जाता है। यह तनाव या खतरे की स्थिति में शरीर को आपातकालीन प्रतिक्रिया के लिए तैयार करता है। इसके मुख्य कार्यों में शामिल हैं:

  • हृदय गति और रक्तचाप बढ़ाना।

  • मांसपेशियों में रक्त प्रवाह बढ़ाना।

  • फेफड़ों में वायुमार्ग को चौड़ा करना (सांस लेने में आसानी)।

  • यकृत से ग्लूकोज़ के स्राव को बढ़ाना, जिससे रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है (ऊर्जा प्रदान करने के लिए)।

  • पाचन और मूत्र प्रणाली जैसी गैर-आवश्यक शारीरिक प्रक्रियाओं को धीमा करना।

16. A या B में से एक का एक उत्तर दीजिए।
A.(i) मानव शरीर में ऑक्सीजन युक्त रक्त की परिसंचरण मार्ग को दर्शाइए।
(ii) मानव में लसीका के दो महत्त्वपूर्ण कार्य लिखिए।

उत्तर:
A.(i) मानव शरीर में ऑक्सीजन युक्त रक्त की परिसंचरण मार्ग:
मानव शरीर में ऑक्सीजन युक्त रक्त (ऑक्सीजनित रक्त) फेफड़ों से हृदय के माध्यम से शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचता है। मार्ग इस प्रकार है:

  1. फेफड़े (Lungs): ऑक्सीजन फेफड़ों की कुपिकाओं (alveoli) से रक्त में विसरित होती है।

  2. फुफ्फुस शिरा (Pulmonary Vein): ऑक्सीजन युक्त रक्त फुफ्फुस शिरा द्वारा फेफड़ों से हृदय के बाएँ आलिंद (Left Atrium) में आता है।

  3. बायाँ निलय (Left Ventricle): बाएँ आलिंद से रक्त द्विकपर्दी वाल्व (Bicuspid Valve) के माध्यम से बाएँ निलय में जाता है।

  4. महाधमनी (Aorta): बायाँ निलय इस ऑक्सीजन युक्त रक्त को महाधमनी में पंप करता है।

  5. धमनियाँ (Arteries): महाधमनी शरीर की छोटी धमनियों में विभाजित होती है।

  6. धमनिकाएँ (Arterioles): धमनियाँ और छोटी धमनिकाओं में विभाजित होती हैं।

  7. केशिकाएँ (Capillaries): धमनिकाएँ अंततः कोशिकाओं के स्तर पर केशिकाओं में विभाजित होती हैं, जहाँ ऑक्सीजन ऊतकों तक पहुँचती है और कार्बन डाइऑक्साइड रक्त में वापस आती है।

संक्षेप में:
फेफड़े → फुफ्फुस शिरा → बायाँ आलिंद → बायाँ निलय → महाधमनी → धमनियाँ → धमनिकाएँ → केशिकाएँ (ऊतक)

A.(ii) मानव में लसीका के दो महत्त्वपूर्ण कार्य लिखिए।

उत्तर:
मानव में लसीका (Lymph) के दो महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं:

  1. तरल पदार्थ का वापस रक्त में परिवहन (Fluid Balance): लसीका प्रणाली ऊतकों से अतिरिक्त ऊतक द्रव (Interstitial fluid) को इकट्ठा करती है और इसे वापस रक्त परिसंचरण में पहुँचाती है। यह रक्त की मात्रा और शरीर में तरल पदार्थ के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।

  2. रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity): लसीका में लिम्फोसाइट्स (एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएँ) और अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाएँ होती हैं। लसीका ग्रंथियाँ (lymph nodes) रोगाणुओं, विषाक्त पदार्थों और अपशिष्ट पदार्थों को छानती हैं और उन्हें नष्ट करती हैं, जिससे शरीर को संक्रमण और बीमारियों से लड़ने में मदद मिलती है। लसीका प्रणाली प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

  3. (अतिरिक्त कार्य) वसा का अवशोषण: छोटी आँत में लसीका वाहिकाएँ (जिन्हें लैक्टील – lacteals कहते हैं) आहार वसा और वसा में घुलनशील विटामिनों को अवशोषित करती हैं और उन्हें रक्तप्रवाह में ले जाती हैं।

अथवा

B. निम्नलिखित के कारण बताइए:
(i) शिराओं में वाल्व होते हैं जबकि धमनियों में नहीं होते।
(ii) हृदय की दाहिनी और बायीं ओर को अलग करने के लिए विभाजिका (सेप्टम) होता है।
(iii) मछलियों का हृदय दो कोष्ठों वाला होता है।
(iv) धमनियों की भित्ति मोटी और लचीली होती हैं।
(v) चोट लगने के कुछ समय बाद उस स्थान पर रक्त का थक्का जम जाता है

उत्तर:
B. निम्नलिखित के कारण बताइए:

(i) शिराओं में वाल्व होते हैं जबकि धमनियों में नहीं होते।
कारण: शिराएँ रक्त को शरीर के विभिन्न भागों से हृदय तक वापस ले जाती हैं। शिराओं में रक्त का प्रवाह कम दबाव पर होता है, और यह गुरुत्वाकर्षण के विपरीत भी हो सकता है (विशेषकर पैरों से हृदय तक)। वाल्व रक्त के पश्च प्रवाह (backflow) को रोकने में मदद करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि रक्त हमेशा हृदय की ओर एक ही दिशा में प्रवाहित हो। धमनियों में रक्त हृदय से उच्च दबाव पर प्रवाहित होता है, इसलिए पश्च प्रवाह का कोई खतरा नहीं होता और वाल्वों की आवश्यकता नहीं होती।

(ii) हृदय की दाहिनी और बायीं ओर को अलग करने के लिए विभाजिका (सेप्टम) होता है।
कारण: विभाजिका (सेप्टम) हृदय के दाहिने और बाएँ पक्षों को अलग करता है ताकि ऑक्सीजन युक्त रक्त (बाएँ पक्ष में) और कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रक्त (दाएँ पक्ष में) आपस में न मिलें। यह दोहरा परिसंचरण (Double Circulation) सुनिश्चित करता है, जिससे ऑक्सीजन की उच्च और कुशल आपूर्ति हो सके, जो उच्च ऊर्जा आवश्यकताओं वाले स्तनधारियों और पक्षियों के लिए आवश्यक है।

(iii) मछलियों का हृदय दो कोष्ठों वाला होता है।
कारण: मछलियों में एकल परिसंचरण (Single Circulation) होता है। उनके हृदय में केवल दो कोष्ठ होते हैं – एक आलिंद और एक निलय। हृदय से रक्त गिल्स (गिल) में पंप किया जाता है जहाँ यह ऑक्सीजनित होता है, और फिर सीधे गिल्स से शरीर के बाकी हिस्सों में प्रवाहित होता है, और फिर वापस हृदय में लौटता है। इसमें ऑक्सीजन युक्त और ऑक्सीजन रहित रक्त का मिश्रण नहीं होता है, लेकिन शरीर में रक्तचाप बनाए रखने के लिए यह कम कुशल होता है।

(iv) धमनियों की भित्ति मोटी और लचीली होती हैं।
कारण: धमनियों को हृदय से शरीर के विभिन्न भागों तक उच्च दबाव पर रक्त पंप करना होता है। मोटी और लचीली भित्तियाँ इस उच्च दबाव को सहन करने और रक्त के प्रवाह के साथ फैलने (elasticity) में मदद करती हैं, जिससे रक्तचाप में अचानक उछाल से बचा जा सके और रक्त का प्रवाह सुचारु बना रहे।

(v) चोट लगने के कुछ समय बाद उस स्थान पर रक्त का थक्का जम जाता है।
कारण: चोट लगने पर रक्त का थक्का जमना शरीर की एक महत्वपूर्ण सुरक्षात्मक क्रिया है जिसे रक्त स्कंदन (Blood Coagulation) कहते हैं। यह प्लेटलेट्स (रक्त बिंबाणु) और कुछ प्लाज्मा प्रोटीन (जैसे फाइब्रिनोजेन) द्वारा होता है। जब रक्त वाहिका क्षतिग्रस्त होती है, तो प्लेटलेट्स उस स्थान पर जमा हो जाते हैं और एक प्लग बनाते हैं। साथ ही, क्षतिग्रस्त ऊतक और प्लेटलेट्स थ्रोम्बोप्लास्टिन नामक पदार्थ छोड़ते हैं, जो कई एंजाइमी प्रतिक्रियाओं की एक श्रृंखला को सक्रिय करता है। अंततः, फाइब्रिनोजेन नामक घुलनशील प्रोटीन फाइब्रिन नामक अघुलनशील जाली में बदल जाता है, जो क्षतिग्रस्त स्थान पर एक जाल बनाता है। यह जाल रक्त कोशिकाओं को फँसा लेता है और एक थक्का बनाता है, जिससे रक्तस्राव रुक जाता है।


खंड ख (रसायन विज्ञान)

17. एक छात्र ने प्रयोगशाला में सार्वत्रिक संसूचक का उपयोग किया और पाया कि विलयन का pH मान 3 है। यह क्या दर्शाता है?
A. विलयन उदासीन है
B. विलयन प्रबल क्षारीय है
C. विलयन प्रबल अम्लीय है
D. विलयन दुर्बल क्षारीय है

सही उत्तर: C. विलयन प्रबल अम्लीय है
व्याख्या: pH स्केल पर, 7 उदासीन होता है, 7 से कम अम्लीय होता है, और 7 से अधिक क्षारीय होता है। pH 3 का मान 7 से काफी कम है, जो एक प्रबल अम्लीय विलयन को दर्शाता है।

18. लेड नाइट्रेट को परखनली में गर्म करने पर जो भूरे रंग का धुआँ निकलता है, वह किस का होता है?
A. लेड ऑक्साइड
B. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
C. ऑक्सीजन
D. कार्बन डाइऑक्साइड

सही उत्तर: B. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
व्याख्या: लेड नाइट्रेट (Pb(NO3)2) को गर्म करने पर उसका तापीय अपघटन होता है, जिससे लेड ऑक्साइड (PbO), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) गैस और ऑक्सीजन (O2) गैस बनती है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड एक भूरे रंग की गैस होती है।
रासायनिक अभिक्रिया: 2Pb(NO3)2(s) → 2PbO(s) + 4NO2(g) + O2(g)

19. क्षारीय लवण का निर्माण होता है
A. प्रबल अम्ल और दुर्बल क्षारक की अभिक्रिया से
B. प्रबल अम्ल और प्रबल क्षारक की अभिक्रिया से
C. दुर्बल अम्ल और दुर्बल क्षारक की अभिक्रिया से
D. दुर्बल अम्ल और प्रबल क्षारक की अभिक्रिया से

सही उत्तर: D. दुर्बल अम्ल और प्रबल क्षारक की अभिक्रिया से
व्याख्या: एक क्षारीय लवण तब बनता है जब एक प्रबल क्षारक (बेस) एक दुर्बल अम्ल के साथ अभिक्रिया करता है। प्रबल क्षारक का आयन लवण को क्षारीय प्रकृति प्रदान करता है।

20. निम्न में कौन-सी धातु ठंडे या गर्म जल से तो अभिक्रिया नहीं करती, परंतु भाप से अभिक्रिया करती है?
A. पोटैशियम और सोडियम
B. लोहा और एल्युमिनियम
C. चाँदी और सोना
D. सीसा और ताँबा

सही उत्तर: B. लोहा और एल्युमिनियम
व्याख्या: पोटैशियम और सोडियम ठंडे जल से तेजी से अभिक्रिया करते हैं। चाँदी, सोना, सीसा और ताँबा जल या भाप से आसानी से अभिक्रिया नहीं करते (ताँबा बहुत धीमी गति से करता है)। लोहा (Fe) और एल्युमिनियम (Al) ठंडे या गर्म जल से अभिक्रिया नहीं करते, लेकिन भाप (steam) के साथ तेजी से अभिक्रिया करके धातु ऑक्साइड और हाइड्रोजन गैस बनाते हैं।
उदाहरण: 3Fe(s) + 4H2O(g) → Fe3O4(s) + 4H2(g)

21. धातु हाइड्रोजन कार्बोनेट, अम्ल से अभिक्रिया कर क्या उत्पन्न करता है?
A. संबंधित लवण, हाइड्रोजन गैस और जल
B. धातु कार्बोनेट और कार्बन डाइऑक्साइड गैस
C. संबंधित लवण, कार्बन डाइऑक्साइड और जल
D. धातु कार्बोनेट और ऑक्सीजन गैस

सही उत्तर: C. संबंधित लवण, कार्बन डाइऑक्साइड और जल
व्याख्या: जब धातु हाइड्रोजन कार्बोनेट (जैसे NaHCO3) अम्ल (जैसे HCl) के साथ अभिक्रिया करता है, तो संबंधित लवण, कार्बन डाइऑक्साइड गैस और जल बनता है।
उदाहरण: NaHCO3(s) + HCl(aq) → NaCl(aq) + H2O(l) + CO2(g)

22. निम्नलिखित प्रश्न में अभिकथन (A) और कारण (R) दिए गए हैं। सही विकल्प चुनिएः
अभिकथन (A): जब लेड (II) नाइट्रेट और पोटैशियम आयोडाइड के विलयन को मिलाया जाता है तो पीले अवक्षेप का निर्माण होता है।
कारण (R): लेड(II)आयोडाइड जल में अघुलनशील होता है, अतः अवक्षेप का निर्माण करता है।

A. A और R दोनों सत्य हैं, और R, A की सही व्याख्या है।
B. A और R दोनों सत्य हैं, परंतु R, A की सही व्याख्या नहीं है।
C. A सत्य है, पर R असत्य है।
D. A असत्य है, पर R सत्य है।

सही उत्तर: A. A और R दोनों सत्य हैं, और R, A की सही व्याख्या है।
व्याख्या: यह एक द्विविस्थापन अभिक्रिया है। लेड (II) नाइट्रेट (Pb(NO3)2) और पोटैशियम आयोडाइड (KI) के विलयनों को मिलाने पर लेड (II) आयोडाइड (PbI2) का एक पीला अवक्षेप बनता है, क्योंकि PbI2 जल में अघुलनशील होता है।
रासायनिक अभिक्रिया: Pb(NO3)2(aq) + 2KI(aq) → PbI2(s) (पीला अवक्षेप) + 2KNO3(aq)

23. विरंजक चूर्ण के निर्माण में होने वाली अभिक्रिया का संतुलित रासायनिक समीकरण लिखिए। इस का कोई एक उपयोग भी बताइए।

उत्तर:
विरंजक चूर्ण (Bleaching Powder) का रासायनिक नाम: कैल्शियम ऑक्सीक्लोराइड (Calcium Oxychloride), सूत्र: CaOCl₂

निर्माण अभिक्रिया का संतुलित रासायनिक समीकरण:
विरंजक चूर्ण का निर्माण शुष्क बुझे हुए चूने (कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड) पर क्लोरीन गैस की अभिक्रिया द्वारा होता है।

Ca(OH)₂(s) + Cl₂(g) → CaOCl₂(s) + H₂O(l)
(शुष्क बुझा हुआ चूना + क्लोरीन → विरंजक चूर्ण + जल)

विरंजक चूर्ण का कोई एक उपयोग:

  1. वस्त्र उद्योग में: सूती एवं लिनेन के विरंजन (bleaching) के लिए।

  2. कागज उद्योग में: लकड़ी की लुगदी (wood pulp) के विरंजन के लिए।

  3. पीने वाले जल को जीवाणुमुक्त करने में: जल को रोगाणुमुक्त (disinfecting) करने और पीने योग्य बनाने के लिए।

  4. ऑक्सीकारक के रूप में: कई रासायनिक उद्योगों में एक ऑक्सीकारक के रूप में।

24. एक छात्र ने ताँबे (कॉपर) की तार को आयरन सल्फेट के विलयन में डाला और एक घंटे बाद भी रंग में कोई परिवर्तन नहीं देखा। इस अवलोकन के पीछे कारण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
इस अवलोकन के पीछे का कारण धातुओं की अभिक्रियाशीलता (Reactivity of Metals) से संबंधित है।

कारण:
रासायनिक अभिक्रियाओं में, अधिक अभिक्रियाशील धातुएँ कम अभिक्रियाशील धातुओं को उनके लवण विलयन से विस्थापित कर देती हैं। धातु की अभिक्रियाशीलता श्रेणी में, लोहा (Iron) ताँबे (Copper) से अधिक अभिक्रियाशील धातु है।

जब ताँबे की तार को आयरन सल्फेट (FeSO₄) के विलयन में डाला जाता है, तो कोई अभिक्रिया नहीं होती क्योंकि:

  • ताँबा (Cu) लोहे (Fe) से कम अभिक्रियाशील है।

  • ताँबा, आयरन सल्फेट के विलयन में से लोहे को विस्थापित नहीं कर सकता।

इसलिए, विलयन के रंग में कोई परिवर्तन नहीं देखा गया और ताँबे की तार पर भी कोई जमाव नहीं हुआ। यदि इसके विपरीत, लोहे की कील को कॉपर सल्फेट के विलयन में डाला जाता, तो लोहा ताँबे को विस्थापित कर देता, और विलयन का रंग बदल जाता तथा लोहे की कील पर ताँबे की परत जम जाती।

25. एक छात्र ने प्रयोगशाला में अपने शिक्षक की देखरेख में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के विलयन को जल के साथ तनुकृत किया:
A. इससे हाइड्रोजन आयन सांद्रता और pH पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
B. अम्ल को तनुकृत करने पर वह कम संक्षारक क्यों हो जाता है?
C. प्रबल अम्ल का तनुकरण करते समय विद्यार्थी को कौन-सी सुरक्षित विधि अपनानी चाहिए? व्याख्या कीजिए।

उत्तर:
A. इससे हाइड्रोजन आयन सांद्रता और pH पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

  • हाइड्रोजन आयन (H⁺) सांद्रता पर प्रभाव: जब हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के विलयन को जल के साथ तनुकृत किया जाता है, तो प्रति इकाई आयतन में हाइड्रोजन आयनों (H⁺) की सांद्रता घट जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अम्ल की मात्रा उतनी ही रहती है, लेकिन विलयन का कुल आयतन बढ़ जाता है।

  • pH पर प्रभाव: चूँकि H⁺ आयन सांद्रता घट जाती है, और pH H⁺ आयन सांद्रता के व्युत्क्रमानुपाती होता है (pH = -log[H⁺]), इसलिए विलयन का pH मान बढ़ जाएगा। हालाँकि, यह अभी भी 7 से कम रहेगा, यानी विलयन अम्लीय रहेगा, लेकिन उसकी अम्लीय शक्ति कम हो जाएगी।

B. अम्ल को तनुकृत करने पर वह कम संक्षारक क्यों हो जाता है?
अम्ल को तनुकृत करने पर उसकी संक्षारक (corrosive) प्रकृति कम हो जाती है क्योंकि:

  • संक्षारक प्रकृति मुख्य रूप से H⁺ आयनों की सांद्रता पर निर्भर करती है।

  • तनुकृत करने पर, H⁺ आयनों की सांद्रता प्रति इकाई आयतन में कम हो जाती है।

  • कम H⁺ आयन सांद्रता का मतलब है कि अम्ल की अभिक्रिया करने और धातुओं, त्वचा या अन्य पदार्थों को नुकसान पहुँचाने की क्षमता कम हो जाती है।

C. प्रबल अम्ल का तनुकरण करते समय विद्यार्थी को कौन-सी सुरक्षित विधि अपनानी चाहिए? व्याख्या कीजिए।
प्रबल अम्ल का तनुकरण करते समय अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि यह एक अत्यधिक ऊष्माक्षेपी (exothermic) प्रक्रिया है। उत्पन्न ऊष्मा के कारण मिश्रण उछल सकता है या कांच का पात्र टूट सकता है।

सुरक्षित विधि:
“अम्ल को धीरे-धीरे जल में मिलाएँ, और जल को अम्ल में न मिलाएँ।”

व्याख्या:

  1. धीरे-धीरे जल में अम्ल मिलाना: एक बड़े बीकर में पर्याप्त मात्रा में जल लेना चाहिए और फिर धीरे-धीरे और लगातार हिलाते हुए अम्ल की थोड़ी-थोड़ी मात्रा को जल में मिलाना चाहिए।

  2. क्यों नहीं अम्ल में जल मिलाना चाहिए: यदि जल को सीधे सांद्र अम्ल में मिलाया जाता है, तो:

    • उत्पन्न अत्यधिक ऊष्मा तुरंत जल को भाप में बदल सकती है।

    • यह भाप बहुत तेजी से बनती है, जिससे अम्ल का मिश्रण पात्र से बाहर उछल सकता है।

    • इससे गंभीर जलन या अन्य चोटें लग सकती हैं।

    • उत्पन्न अत्यधिक ऊष्मा के कारण कांच का पात्र टूट भी सकता है।

जल की विशिष्ट ऊष्मा अधिक होती है और इसका आयतन बड़ा होने के कारण यह उत्पन्न ऊष्मा को प्रभावी ढंग से अवशोषित कर लेता है, जिससे तापमान वृद्धि नियंत्रित रहती है।

26. A या B में से एक का एक उत्तर दीजिए।
A. (i) भर्जन एवं निस्तापन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
(ii) कम अभिक्रियाशील धातुओं को उनके अयस्क से प्राप्त करने के विभिन्न चरणों का संक्षिप्त प्रवाह चार्ट बनाइए।

उत्तर:
A. (i) भर्जन (Roasting) एवं निस्तापन (Calcination) में अंतर:

विशेषताभर्जन (Roasting)निस्तापन (Calcination)
प्रक्रियाअयस्क को वायु की उपस्थिति में उसके गलनांक से नीचे गर्म करना।अयस्क को वायु की अनुपस्थिति या सीमित आपूर्ति में उसके गलनांक से नीचे गर्म करना।
मुख्य लक्ष्यसल्फाइड अयस्कों को ऑक्साइड में बदलना।कार्बोनेट और हाइड्रॉक्साइड अयस्कों को ऑक्साइड में बदलना और वाष्पशील अशुद्धियों (जैसे जल, CO₂) को निकालना।
अयस्क का प्रकारमुख्य रूप से सल्फाइड अयस्क (जैसे Cu₂S, ZnS, PbS)।मुख्य रूप से कार्बोनेट अयस्क (जैसे ZnCO₃, CaCO₃) और हाइड्रॉक्साइड अयस्क।
उत्पादित गैसेंSO₂, CO₂ आदि (सल्फाइड से SO₂)।CO₂, H₂O आदि।
उदाहरण2ZnS(s) + 3O₂(g) → 2ZnO(s) + 2SO₂(g)ZnCO₃(s) → ZnO(s) + CO₂(g)

A. (ii) कम अभिक्रियाशील धातुओं को उनके अयस्क से प्राप्त करने के विभिन्न चरणों का संक्षिप्त प्रवाह चार्ट:

कम अभिक्रियाशील धातुएँ (जैसे कॉपर, पारा, चाँदी) अक्सर सल्फाइड अयस्कों के रूप में पाई जाती हैं। इन्हें प्राप्त करने के चरण अपेक्षाकृत सरल होते हैं।

कम अभिक्रियाशील धातुओं के अयस्कों से धातु प्राप्त करने के चरण:

Code

अयस्क का सांद्रण (Concentration of Ore)
        ↓
सांद्रित अयस्क (Concentrated Ore)
        ↓
        भर्जन (Roasting)
        (वायु की उपस्थिति में गर्म करना)
        ↓
धातु ऑक्साइड + SO₂ गैस
        ↓
        अपचयन (Reduction)
        (स्व-अपचयन या कार्बन द्वारा)
        ↓
अपरिष्कृत धातु (Impure Metal)
        ↓
        विद्युत अपघटनी परिष्करण (Electrolytic Refining)
        ↓
शुद्ध धातु (Pure Metal)

उदाहरण: सिनाबार (HgS) से पारा (Hg) प्राप्त करना:
HgS(s) + O₂(g) → Hg(l) + SO₂(g) (भर्जन और स्व-अपचयन एक ही चरण में)

कॉपर सल्फाइड (Cu₂S) से कॉपर (Cu) प्राप्त करना:
2Cu₂S(s) + 3O₂(g) → 2Cu₂O(s) + 2SO₂(g) (भर्जन)
2Cu₂O(s) + Cu₂S(s) → 6Cu(s) + SO₂(g) (स्व-अपचयन)

अथवा

B. एक तकनीशियन मशीन के टूटे हुए इस्पात जोड़ (steel joint) की मरम्मत के लिए थर्मिट अभिक्रिया का उपयोग करता है।
(i) यह अभिक्रिया धातु के भागों को जोड़ने में किस प्रकार सहायक होती है?
(ii) इसमें प्रयुक्त होने वाली रासायनिक अभिक्रिया के लिए समीकरण लिखिए।
(iii) इस अभिक्रिया में एल्युमिनियम को जिंक या ताँबे की अपेक्षा क्यों वरीयता दी जाती है?

उत्तर:
B. थर्मिट अभिक्रिया (Thermite Reaction) का उपयोग:

(i) यह अभिक्रिया धातु के भागों को जोड़ने में किस प्रकार सहायक होती है?
थर्मिट अभिक्रिया एक अत्यधिक ऊष्माक्षेपी (highly exothermic) रेडॉक्स अभिक्रिया है जिसमें धातु ऑक्साइड (जैसे आयरन ऑक्साइड) को एल्युमिनियम चूर्ण के साथ अपचयित किया जाता है। यह अभिक्रिया इतनी अधिक ऊष्मा उत्पन्न करती है कि अपचयित धातु (जैसे लोहा) पिघली हुई अवस्था में प्राप्त होती है। इस पिघली हुई धातु का उपयोग टूटे हुए धातु के भागों (जैसे रेलवे ट्रैक या मशीन के पुर्जे) के बीच के गैप को भरने और उन्हें आपस में जोड़ने के लिए किया जाता है। पिघली हुई धातु ठंडा होकर एक मजबूत जोड़ बना देती है।

(ii) इसमें प्रयुक्त होने वाली रासायनिक अभिक्रिया के लिए समीकरण लिखिए।
सामान्यतः, आयरन (III) ऑक्साइड (Fe₂O₃) का उपयोग किया जाता है:
Fe₂O₃(s) + 2Al(s) → 2Fe(l) + Al₂O₃(s) + ऊष्मा (Heat)
(आयरन ऑक्साइड + एल्युमिनियम → पिघला हुआ लोहा + एल्युमिनियम ऑक्साइड + ऊष्मा)

(iii) इस अभिक्रिया में एल्युमिनियम को जिंक या ताँबे की अपेक्षा क्यों वरीयता दी जाती है?
एल्युमिनियम को जिंक या ताँबे की अपेक्षा वरीयता दी जाती है क्योंकि:

  1. उच्च अभिक्रियाशीलता: एल्युमिनियम (Al) जिंक (Zn) और ताँबे (Cu) दोनों की तुलना में अधिक अभिक्रियाशील धातु है। धातुओं की अभिक्रियाशीलता श्रेणी में एल्युमिनियम ऊपर आता है।

  2. प्रबल अपचायक: अपनी उच्च अभिक्रियाशीलता के कारण, एल्युमिनियम एक प्रबल अपचायक (strong reducing agent) है। यह आयरन ऑक्साइड जैसे धातु ऑक्साइड को अधिक प्रभावी ढंग से अपचयित कर सकता है।

  3. अधिक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया: एल्युमिनियम के साथ अपचयन अभिक्रियाएँ अत्यधिक ऊष्माक्षेपी होती हैं, जिसका अर्थ है कि वे बड़ी मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न करती हैं। यह अत्यधिक ऊष्मा लोहे को पिघली हुई अवस्था में प्राप्त करने के लिए आवश्यक है, जो जोड़ने की प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है। जिंक या ताँबा उतनी ऊष्मा उत्पन्न नहीं करते।

27. एक प्रयोग में, काले कॉपर ऑक्साइड (CuO) को गर्म करते हुए उस पर हाइड्रोजन गैस प्रवाहित की गई। परिणामस्वरूप, लाल-भूरा ठोस (कॉपर) बना तथा परखनली के ठंडे भाग पर जल की बूंदें संघनित हो गईं।
उपभाग A या B में से का एक उत्तर दीजिए।
A. इस अभिक्रिया का संतुलित रासायनिक समीकरण लिखिए।

उत्तर:
A. संतुलित रासायनिक समीकरण:
CuO(s) + H₂(g) → Cu(s) + H₂O(l)
(कॉपर ऑक्साइड (काला) + हाइड्रोजन → कॉपर (लाल-भूरा) + जल)

अथवा

B. यह अभिक्रिया रेडॉक्स क्यों मानी जाती है?
C. कौन-सा पदार्थ ऑक्सीकारक और कौन-सा अपचायक की तरह कार्य कर रहा है?
D. उपरोक्त अभिक्रिया में किस पदार्थ का उपचयन एवं किस का अपचयन हुआ?

उत्तर:
B. यह अभिक्रिया रेडॉक्स क्यों मानी जाती है?
यह अभिक्रिया एक रेडॉक्स (Redox) अभिक्रिया मानी जाती है क्योंकि इसमें एक ही समय में उपचयन (Oxidation) और अपचयन (Reduction) दोनों प्रक्रियाएँ होती हैं। एक पदार्थ का ऑक्सीकरण होता है जबकि दूसरे का अपचयन होता है।

C. कौन-सा पदार्थ ऑक्सीकारक और कौन-सा अपचायक की तरह कार्य कर रहा है?

  • ऑक्सीकारक (Oxidising Agent): कॉपर ऑक्साइड (CuO)

    • यह हाइड्रोजन को ऑक्सीकृत करता है और स्वयं अपचयित होता है।

  • अपचायक (Reducing Agent): हाइड्रोजन (H₂)

    • यह कॉपर ऑक्साइड को अपचयित करता है और स्वयं ऑक्सीकृत होता है।

D. उपरोक्त अभिक्रिया में किस पदार्थ का उपचयन एवं किस का अपचयन हुआ?

  • उपचयन (Oxidation) हुआ: हाइड्रोजन (H₂) का उपचयन हुआ है क्योंकि इसमें ऑक्सीजन का योग हुआ है (H₂ → H₂O)।

  • अपचयन (Reduction) हुआ: कॉपर ऑक्साइड (CuO) का अपचयन हुआ है क्योंकि इसमें ऑक्सीजन का निष्कासन हुआ है (CuO → Cu)।

28. A या B में से एक का एक उत्तर दीजिए ।
A. (i) इलेक्ट्रॉन बिंदु आकृति की सहायता से लीथियम ऑक्साइड (Li₂O) के निर्माण की व्याख्या कीजिए।
(ii) आयनिक यौगिक में द्रव या गलित अवस्था में ही विद्युत का चालन करते है लेकिन ठोस अवस्था में नहीं। कारण बताइए?

उत्तर:
A. (i) इलेक्ट्रॉन बिंदु आकृति की सहायता से लीथियम ऑक्साइड (Li₂O) के निर्माण की व्याख्या कीजिए।

लीथियम (Li): परमाणु संख्या = 3। इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 1। इसके बाहरी कोश में 1 इलेक्ट्रॉन है। यह एक इलेक्ट्रॉन खोकर Li⁺ आयन बनाना चाहता है।
ऑक्सीजन (O): परमाणु संख्या = 8। इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = 2, 6। इसके बाहरी कोश में 6 इलेक्ट्रॉन हैं। यह 2 इलेक्ट्रॉन प्राप्त करके O²⁻ आयन बनाना चाहता है।

Li₂O के निर्माण के लिए, दो लीथियम परमाणु प्रत्येक एक इलेक्ट्रॉन का दान करते हैं, और एक ऑक्सीजन परमाणु उन दो इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करता है।

इलेक्ट्रॉन बिंदु आकृति:

  1. लीथियम परमाणु (Li): Li∙

  2. ऑक्सीजन परमाणु (O): :Ö: (ऑक्सीजन के बाहरी कोश में 6 इलेक्ट्रॉन हैं)

निर्माण प्रक्रिया:

  • एक लीथियम परमाणु अपना एक इलेक्ट्रॉन ऑक्सीजन परमाणु को देता है।

  • दूसरा लीथियम परमाणु भी अपना एक इलेक्ट्रॉन उसी ऑक्सीजन परमाणु को देता है।

  • इस प्रकार, प्रत्येक लीथियम परमाणु एक स्थायी अष्टक प्राप्त करता है (पिछले कोश में 2 इलेक्ट्रॉन) और Li⁺ आयन बनाता है।

  • ऑक्सीजन परमाणु दो इलेक्ट्रॉन प्राप्त करके अपना अष्टक पूरा करता है और O²⁻ आयन बनाता है।

Code

Li∙  →  Li⁺  +  e⁻
   Li∙  →  Li⁺  +  e⁻
   :Ö:  + 2e⁻ →  :Ö:²⁻
             ¨ ¨

कुल अभिक्रिया:
2Li + O → 2Li⁺ + O²⁻ या (Li⁺)₂O²⁻

बनी हुई संरचना: Li⁺ [:Ö:]²⁻ Li⁺
यहां, लीथियम आयन (Li⁺) और ऑक्साइड आयन (O²⁻) के बीच एक मजबूत स्थिरवैद्युत आकर्षण बल (electrostatic force of attraction) होता है, जो आयनिक बंध का निर्माण करता है।

A. (ii) आयनिक यौगिक में द्रव या गलित अवस्था में ही विद्युत का चालन करते है लेकिन ठोस अवस्था में नहीं। कारण बताइए?

कारण:
आयनिक यौगिक (जैसे NaCl, Li₂O) आयनों से बने होते हैं (धनायन और ऋणायन)। विद्युत का चालन करने के लिए आवेशित कणों (आयन या इलेक्ट्रॉन) का स्वतंत्र रूप से गतिमान होना आवश्यक है।

  1. ठोस अवस्था में: आयनिक यौगिकों में, आयन एक मजबूत क्रिस्टल जालक संरचना में कसकर बंधे होते हैं। वे अपनी निश्चित स्थिति से हिल नहीं सकते, यद्यपि वे कंपन करते हैं। चूंकि आयन गति करने के लिए स्वतंत्र नहीं होते, इसलिए वे विद्युत का चालन नहीं करते।

  2. गलित (molten) अवस्था में: जब एक आयनिक यौगिक को पिघलाया जाता है, तो क्रिस्टल जालक संरचना टूट जाती है। आयन अब एक दूसरे से स्वतंत्र हो जाते हैं और पूरे गलित में स्वतंत्र रूप से गति करने में सक्षम होते हैं। इन गतिमान आयनों के कारण, गलित आयनिक यौगिक विद्युत का चालन करता है।

  3. द्रव (जलीय) अवस्था में: जब एक आयनिक यौगिक को जल जैसे ध्रुवीय विलायक में घोला जाता है, तो जल के अणु आयनों को अलग कर देते हैं (विलयन) और उन्हें स्वतंत्र रूप से गति करने की अनुमति देते हैं। ये स्वतंत्र रूप से गतिमान आयन विलयन में विद्युत का चालन करते हैं।

संक्षेप में, आयनिक यौगिकों में विद्युत के चालन के लिए आवश्यक मुक्त आयनों की उपस्थिति केवल गलित या जलीय अवस्था में होती है, ठोस अवस्था में नहीं।

अथवा

B. (i) एल्युमिनियम ऑक्साइड को उभयधर्मी ऑक्साइड क्यों माना जाता है? उदाहरण की सहायता से स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
B. (i) एल्युमिनियम ऑक्साइड (Al₂O₃) को उभयधर्मी ऑक्साइड (Amphoteric Oxide) क्यों माना जाता है? उदाहरण की सहायता से स्पष्ट कीजिए।

उभयधर्मी ऑक्साइड (Amphoteric Oxides): वे धातु ऑक्साइड जो अम्लीय और क्षारीय दोनों गुणों को प्रदर्शित करते हैं, अर्थात, वे अम्ल के साथ क्षारक की तरह और क्षारक के साथ अम्ल की तरह अभिक्रिया करते हैं, उभयधर्मी ऑक्साइड कहलाते हैं।

एल्युमिनियम ऑक्साइड (Al₂O₃) उभयधर्मी है क्योंकि:
यह अम्ल और क्षारक दोनों के साथ अभिक्रिया करता है, जिससे लवण और जल बनता है।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण:

  1. अम्ल के साथ अभिक्रिया (क्षारक की तरह व्यवहार):
    जब एल्युमिनियम ऑक्साइड हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) जैसे अम्ल के साथ अभिक्रिया करता है, तो यह एक क्षारक की तरह व्यवहार करता है और एल्युमिनियम क्लोराइड (लवण) तथा जल बनाता है:
    Al₂O₃(s) + 6HCl(aq) → 2AlCl₃(aq) + 3H₂O(l)
    (एल्युमिनियम ऑक्साइड + हाइड्रोक्लोरिक अम्ल → एल्युमिनियम क्लोराइड + जल)

  2. क्षारक के साथ अभिक्रिया (अम्ल की तरह व्यवहार):
    जब एल्युमिनियम ऑक्साइड सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) जैसे प्रबल क्षारक के साथ अभिक्रिया करता है, तो यह एक अम्ल की तरह व्यवहार करता है और सोडियम एलुमिनेट (लवण) तथा जल बनाता है:
    Al₂O₃(s) + 2NaOH(aq) → 2NaAlO₂(aq) + H₂O(l)
    (एल्युमिनियम ऑक्साइड + सोडियम हाइड्रॉक्साइड → सोडियम एलुमिनेट + जल)
    (यह Na[Al(OH)₄] के रूप में भी लिखा जा सकता है, जिसे सोडियम टेट्राहाइड्रॉक्सोएलुमिनेट कहते हैं।)

इन दोनों अभिक्रियाओं से स्पष्ट होता है कि एल्युमिनियम ऑक्साइड अम्ल और क्षारक दोनों के साथ अभिक्रिया करके लवण और जल बनाता है, इसलिए इसे एक उभयधर्मी ऑक्साइड कहा जाता है।


खंड ग (भौतिक विज्ञान)

29. जब श्वेत प्रकाश की संकीर्ण किरण को काँच के प्रिज्म से गुजारा जाता है, तो यह अपने अवयवीवर्णों में विभाजित हो जाती है। इस परिघटना को क्या कहते हैं?
A. टिंडल प्रभाव
B. प्रकाश का विक्षेपण
C. प्रकाश का पूर्ण परावर्तन
D. प्रकाश का परावर्तन

सही उत्तर: B. प्रकाश का विक्षेपण
व्याख्या: श्वेत प्रकाश का उसके घटक रंगों (बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल – VIBGYOR) में विभाजित होने की परिघटना को प्रकाश का विक्षेपण (Dispersion of light) कहते हैं। यह प्रिज्म द्वारा होता है क्योंकि विभिन्न रंगों के प्रकाश का अपवर्तनांक प्रिज्म के माध्यम में अलग-अलग होता है।

30. अवतल दर्पण किस स्थिति में आवर्धित और आभासी प्रतिबिंब बनाता है, जब वस्तु
A. अनन्त पर हो
B. वक्रता केंद्र से परे
C. ध्रुव और फोकस के बीच
D. वक्रता केंद्र पर

सही उत्तर: C. ध्रुव और फोकस के बीच
व्याख्या: अवतल दर्पण केवल एक स्थिति में आभासी और आवर्धित प्रतिबिंब बनाता है: जब वस्तु ध्रुव (P) और मुख्य फोकस (F) के बीच रखी जाती है। इस स्थिति में प्रतिबिंब दर्पण के पीछे बनता है, सीधा होता है और वस्तु से बड़ा होता है।

31. वायुमंडल में प्रकाश के किस रंग का प्रकीर्णन सब से कम होता है?
A. नीला
B. लाल
C. बैंगनी
D. हरा

सही उत्तर: B. लाल
व्याख्या: प्रकाश का प्रकीर्णन तरंगदैर्ध्य के व्युत्क्रमानुपाती होता है (रेले का प्रकीर्णन नियम, I ∝ 1/λ⁴)। लाल रंग की तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होती है, इसलिए इसका प्रकीर्णन सबसे कम होता है। यही कारण है कि सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य लाल दिखाई देता है और खतरे के संकेतों में लाल रंग का उपयोग किया जाता है।

32. यदि अवतल लेंस की फोकस दूरी 50 सेमी है, तो उसकी क्षमता क्या होगी?
A. +2 D
B. -2 D
C. +0.5 D
D. -0.5 D

सही उत्तर: B. -2 D
व्याख्या:
अवतल लेंस की फोकस दूरी हमेशा ऋणात्मक होती है।
फोकस दूरी (f) = -50 सेमी = -0.5 मीटर
लेंस की क्षमता (P) = 1/f (मीटर में)
P = 1 / (-0.5 m)
P = -2 डायोप्टर (D)

33. निम्नलिखित प्रश्न में अभिकथन (A) और कारण (R) दिए गए हैं। सही विकल्प चुनिएः
अभिकथन (A): अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी में परिवर्तन कर निकट एवं दूर की वस्तुओं को फोकस करना मानव नेत्र की समंजन क्षमता कहलाती है।
कारण (R): नेत्र का कॉर्निया (स्वच्छ मंडल) फोकस दूरी को बदलने में मदद करता है।

A. A और R दोनों सत्य हैं, और R, A की सही व्याख्या है।
B. A और R दोनों सत्य हैं, परंतु R, A की सही व्याख्या नहीं है।
C. A सत्य है, पर R असत्य है।
D. A असत्य है, पर R सत्य है।

सही उत्तर: C. A सत्य है, पर R असत्य है।
व्याख्या:

  • अभिकथन (A): सत्य है। अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी को पक्ष्माभी पेशियों (ciliary muscles) द्वारा समायोजित करके निकट और दूर की वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देखने की क्षमता को समंजन क्षमता (Accommodation) कहते हैं।

  • कारण (R): असत्य है। नेत्र का कॉर्निया (स्वच्छ मंडल) एक स्थिर अपवर्तक सतह है और इसकी फोकस दूरी नहीं बदलती। अभिनेत्र लेंस (जिसे क्रिस्टलीय लेंस भी कहते हैं) की वक्रता को बदलकर उसकी फोकस दूरी को पक्ष्माभी पेशियाँ बदलती हैं।

34. A या B में से एक का एक उत्तर दीजिए ।
A. यदि पृथ्वी के वायुमंडल का घनत्व एकसमान हो, तो तारों के टिमटिमाने पर क्या प्रभाव पड़ेगा? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
A. यदि पृथ्वी के वायुमंडल का घनत्व एकसमान हो, तो तारों के टिमटिमाने पर क्या प्रभाव पड़ेगा? स्पष्ट कीजिए।

तारों का टिमटिमाना (Twinkling of Stars) का कारण:
तारों का टिमटिमाना वायुमंडलीय अपवर्तन (Atmospheric Refraction) के कारण होता है। पृथ्वी का वायुमंडल कई परतों से बना है, जिनका घनत्व और तापमान लगातार बदलता रहता है। इसके परिणामस्वरूप, वायुमंडल का अपवर्तनांक भी लगातार बदलता रहता है। जब तारों से आने वाला प्रकाश वायुमंडल की विभिन्न परतों से होकर गुजरता है, तो यह लगातार अपवर्तित होता रहता है। यह अपवर्तन प्रकाश की तीव्रता और दिशा को अनियमित रूप से बदल देता है, जिससे तारा कभी चमकीला, कभी धुंधला, और कभी थोड़ा अपनी स्थिति से हटा हुआ दिखाई देता है, जिसे टिमटिमाना कहते हैं।

प्रभाव यदि वायुमंडल का घनत्व एकसमान हो:
यदि पृथ्वी के वायुमंडल का घनत्व एकसमान हो जाता, तो वायुमंडल का अपवर्तनांक भी एकसमान (या स्थिर) हो जाता।

  • इस स्थिति में, तारों से आने वाला प्रकाश वायुमंडल से होकर गुजरने पर भी अनियमित रूप से अपवर्तित नहीं होता।

  • प्रकाश केवल एक सीधी रेखा में (या एक निश्चित कोण पर) अपवर्तित होता, लेकिन उसकी दिशा या तीव्रता में अनियमित परिवर्तन नहीं होता।

  • परिणामस्वरूप, तारे नहीं टिमटिमाते। वे एक स्थिर प्रकाश स्रोत के रूप में दिखाई देते, जैसे ग्रह दिखाई देते हैं।

अथवा

B. एक किरण आरेख की सहायता से इंद्रधनुष के निर्माण को दर्शाइए और उन बिंदुओं को चिन्हित कीजिए:
(i) जहाँ प्रकाश का विक्षेपण होता है।
(ii) जहाँ पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है।

उत्तर:
B. इंद्रधनुष का निर्माण (किरण आरेख):
इंद्रधनुष वर्षा के पश्चात आकाश में जल की बूंदों द्वारा प्रकाश के विक्षेपण, पूर्ण आंतरिक परावर्तन और अपवर्तन के संयोजन से बनता है।

 

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