Lesson-3 ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना

अध्याय-3: ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना (Rural Administration)

 


1. कंपनी की प्रारंभिक रणनीति

  • ईस्ट इंडिया कंपनी का उद्देश्य:
    • शुरू में व्यापार पर ज़ोर, लेकिन 1765 में दीवानी मिलने के बाद राजस्व और प्रशासन पर ध्यान।
  • मुख्य चुनौतियाँ:
    • पुराने शासकों और जमींदारों का प्रभाव बना रहा।
    • स्थानीय सत्ता संरचनाओं को नियंत्रण में लाना मुश्किल।
  • राजस्व संग्रह की रणनीति:
    • अधिकतम राजस्व वसूली का प्रयास।
    • व्यवस्थित प्रणाली का अभाव।
    • भारत से सस्ते कपड़े (सूती, रेशमी) खरीदने का लक्ष्य।
  • बंगाल की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
    • कारीगरों और किसानों पर दबाव बढ़ा।
    • कम दामों की वजह से कारीगर गाँव छोड़ने लगे।
    • खेती और उत्पादन प्रभावित हुआ।

2. नई राजस्व व्यवस्थाएँ

(क) स्थायी बंदोबस्त

  • जमींदारों के माध्यम से लगान वसूली।
  • किसानों पर भारी बोझ, और जमींदारों का अधिकार भी अस्थायी।

(ख) महालवारी व्यवस्था (1822, होल्ट मैकेंजी)

  • क्षेत्र: उत्तर-पश्चिमी प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश)।
  • गाँव को इकाई मानकर:
    • खेतों का सर्वेक्षण।
    • रीति-रिवाजों और उपज का रिकॉर्ड।
  • गाँव के मुखिया को राजस्व वसूली का कार्य।
  • राजस्व अस्थायी, समय-समय पर संशोधन संभव।

(ग) रैयतवारी व्यवस्था (थॉमस मुनरो)

  • क्षेत्र: दक्षिण भारत, जहाँ जमींदारी परंपरा नहीं थी।
  • सीधा कर संग्रह: कंपनी ↔ किसान (रैयत)।
  • खेतों का सर्वेक्षण कर, किसान की आय के आधार पर कर निर्धारण।

3. यूरोप के लिए फसलें

नील की खेती

  • महत्त्व: कपड़ों को रंगने में प्रयुक्त।
  • माँग: यूरोप में औद्योगीकरण से माँग में वृद्धि।
  • प्रतिस्पर्धा: यूरोप में बोड पौधे से बनी नील से बेहतर।
  • बागान व्यवस्था:
    • अनुबंध (सट्टा) के तहत किसानों से नील की खेती।
    • कर्ज देकर 25% ज़मीन पर नील उगाने को मजबूर किया गया।
  • कठिनाइयाँ:
    • हल-बैल की कमी।
    • नील की खेती से मिट्टी की उर्वरता घटती थी।

4. नील विद्रोह (1859)

कारण:

  • रैयतों को बहुत कम दाम पर नील बेचनी पड़ती थी।
  • कर्ज का चक्र कभी खत्म नहीं होता।
  • मिट्टी खराब होती थी, अन्य फसलें प्रभावित होती थीं।
  • बागान मालिकों द्वारा ज़बरदस्ती।

मुख्य घटनाएँ:

  • मार्च 1859: बंगाल के रैयतों ने नील की खेती से इनकार किया।
  • हथियारों से लैस होकर फैक्ट्रियों पर हमला।
  • गुमाश्तों और लठियालों का सामाजिक बहिष्कार।

परिणाम:

  • नील आयोग गठित, बागान मालिकों को दोषी ठहराया।
  • रैयतों को नील की खेती बंद करने की अनुमति।
  • बंगाल में नील उत्पादन समाप्त।
  • 1917: महात्मा गांधी ने चंपारण आंदोलन से इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया।

5. समस्याएँ

  • अधिक राजस्व: किसान नहीं चुका पाए → गाँव खाली होने लगे।
  • कर्ज का बोझ: किसानों को नील और लगान के लिए कर्ज लेना पड़ा।
  • उत्पादन में गिरावट: नील की खेती और अत्यधिक लगान से कृषि व कारीगरी प्रभावित।

 


प्रश्नावली:

1. निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ—

  • रैयत – रैयतों की ज़मीन पर खेती
  • म-समूह – महाल
  • किसान – रैयती
  • निज – बाग़ान मालिकों की अपनी ज़मीन पर खेती

2. रिक्त स्थान भरें—
(क) यूरोप में वोड उत्पादकों को नील से अपनी आमदनी में गिरावट का ख़तरा दिखाई देता था।
(ख) अठारहवीं सदी के आख़िर में ब्रिटेन में नील की माँग कपास के उद्योग के कारण बढ़ने लगी।
(ग) कृत्रिम रंगों की खोज से नील की अंतर्राष्ट्रीय माँग पर बुरा असर पड़ा।
(घ) चंपारण आंदोलन नील की जबरन खेती के ख़िलाफ़ था।


3. स्थायी बंदोबस्त के मुख्य पहलुओं का वर्णन कीजिए।

  • ईस्ट इंडिया कंपनी ने ज़मींदारों को राजस्व वसूली का माध्यम बनाया।
  • उन्हें लगान की एक निश्चित राशि सरकार को हर साल देनी होती थी।
  • यदि वे यह राशि नहीं चुका पाते, तो उनकी ज़मीन नीलाम कर दी जाती थी।
  • ज़मींदारों को लगान की तय राशि से अधिक वसूली की छूट थी।
  • इससे वे अधिक कमाई कर सकते थे और किसानों पर बोझ बढ़ा।

4. महालवारी व्यवस्था स्थायी बंदोबस्त के मुकाबले कैसे अलग थी?

  • महालवारी व्यवस्था में राजस्व पूरे गाँव या महाल के आधार पर तय होता था, जबकि स्थायी बंदोबस्त में व्यक्तिगत ज़मींदार जिम्मेदार होते थे।
  • इसमें राजस्व की समीक्षा समय-समय पर होती थी, जबकि स्थायी बंदोबस्त में लगान निश्चित और स्थायी था।

5. राजस्व निर्धारण की नयी मुनरो व्यवस्था के कारण पैदा हुई दो समस्याएँ बताइए।

  • लगान की दर बहुत ऊँची थी जिससे किसान उसे चुका नहीं पाते थे।
  • खेती छोड़कर किसान गाँवों से भागने लगे जिससे कृषि उत्पादन में गिरावट आई।

6. रैयत नील की खेती से क्यों कतरा रहे थे?

  • नील की खेती में लाभ नहीं था और ज़मीन की उपजाऊ शक्ति घट जाती थी।
  • बाग़ान मालिक उन्हें धोखा देते थे और कम दाम पर नील लेते थे।
  • ज़बरन अनुबंध करा लिए जाते थे जिससे रैयत बंधन में बँध जाते थे।

7. किन परिस्थितियों में बंगाल में नील का उत्पादन धराशायी हो गया?

  • रैयतों ने नील की खेती से इनकार कर दिया।
  • उन्होंने अनुबंध मानने से इनकार किया।
  • चंपारण जैसे आंदोलनों से बाग़ान मालिक डर गए और नील की खेती बंद करने लगे।
  • सरकार को नील की जबरन खेती पर रोक लगानी पड़ी।

8. चंपारण आंदोलन और उसमें महात्मा गांधी की भूमिका के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठा करें।
उत्तर सुझाव:
महात्मा गांधी 1917 में चंपारण आए। उन्होंने रैयतों की समस्याओं को सुना और शांतिपूर्ण आंदोलन चलाया। उन्होंने सत्याग्रह और अहिंसा के माध्यम से नील की जबरन खेती के खिलाफ आवाज़ उठाई। अंततः अंग्रेज़ों को समझौता करना पड़ा और नील की खेती का अनुबंध रद्द कर दिया गया।


9. भारत के शुरुआती चाय या कॉफी बाग़ानों का इतिहास देखें। ध्यान दें कि इन बाग़ानों में काम करने वाले मज़दूरों और नील के बाग़ानों में काम करने वाले मज़दूरों के जीवन में क्या समानताएँ या फ़र्क थे।
उत्तर सुझाव:

  • दोनों ही बाग़ानों में मज़दूरों की हालत बहुत खराब थी।
  • उन्हें बहुत कम मज़दूरी मिलती थी और बंधुआ मज़दूरी जैसे हालात थे।
  • चाय और कॉफी बाग़ानों में मज़दूर दूर-दराज़ के क्षेत्रों से लाए जाते थे और अनुबंध में बाँध दिए जाते थे।
  • नील के बाग़ानों में स्थानीय किसान ही मजबूर किए जाते थे।
  • दोनों में अत्याचार और शोषण की स्थिति समान थी।

10. एक किसान को नील की खेती के लिए मजबूर किया जा रहा है। बाग़ान मालिक और उस किसान के बीच बातचीत की कल्पना कीजिए। किसान को राज़ी करने के लिए बग़ान मालिक क्या कारण बताएगा? किसान किन समस्याओं का जिक्र करेगा? इस बातचीत को अभिनय के ज़रिए दिखाएँ।

उत्तर सुझाव (संवाद):
बाग़ान मालिक: “तुम नील की खेती करो। मैं तुम्हें अच्छा भुगतान दूँगा, बीज और खाद भी दूँगा।”
किसान: “साहब, नील की खेती से मेरी ज़मीन खराब हो जाती है। गेहूँ और धान नहीं उगते। पिछली बार आपने दाम भी बहुत कम दिए थे।”
बाग़ान मालिक: “इस बार दाम अच्छे मिलेंगे। अगर तुम मना करोगे तो अनुबंध के तहत कार्रवाई होगी।”
किसान: “मुझे अपने परिवार का पेट पालना है। नील से नुकसान ही नुकसान है। मैं यह खेती नहीं कर सकता।”


महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर (Important Q&A)

1. ईस्ट इंडिया कंपनी ने ग्रामीण क्षेत्रों में शासन कैसे स्थापित किया?

उत्तर:
कंपनी ने पहले जमींदारों के माध्यम से लगान वसूला, लेकिन बाद में महालवारी (उत्तर भारत) और रैयतवारी (दक्षिण भारत) व्यवस्थाएँ लागू कीं। साथ ही, नील व अफीम जैसी फसलों की खेती को भी बढ़ावा दिया।


2. महालवारी और रैयतवारी व्यवस्था में अंतर बताइए।

उत्तर:

  • महालवारी: गाँव को इकाई माना गया, मुखिया को कर संग्रह की जिम्मेदारी। (होल्ट मैकेंजी, 1822)
  • रैयतवारी: किसान से सीधे कंपनी ने कर वसूला। (थॉमस मुनरो)

3. नील की खेती की माँग क्यों बढ़ी? इसे बढ़ावा कैसे दिया गया?

उत्तर:
औद्योगीकरण के कारण यूरोप में नील की माँग बढ़ी। बागान मालिकों ने रैयतों को अनुबंधित कर, कर्ज देकर जबरन नील उगवाया।


4. नील विद्रोह के कारण और परिणाम क्या थे?

उत्तर:

  • कारण: कम दाम, कर्ज का बोझ, मिट्टी की हानि, अत्याचार।
  • परिणाम: नील आयोग बना, बागान मालिक दोषी ठहराए गए, नील की खेती रुक गई, और 1917 में चंपारण आंदोलन से यह मुद्दा उभरा।

5. कंपनी की नीतियों का ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ा?

उत्तर:
ग्रामीण अर्थव्यवस्था संकट में आ गई। किसान कर्ज में डूबे, खेती व कारीगरी प्रभावित हुई, गाँव वीरान हो गए।

 

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