राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन: 1870 के दशक से 1947 तक
यह अध्याय भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के उदय और विकास पर केंद्रित है, जो 1870 के दशक से 1947 तक चला। इसमें विभिन्न चरणों, प्रमुख घटनाओं और नेताओं को शामिल किया गया है जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मुख्य बिंदु:
राष्ट्रवाद का उदय (1870-1880 के दशक):
अंग्रेज़ी शासन के तहत भारतीयों में असंतोष बढ़ा।
नए राजनीतिक संगठन बने, जिनमें पूना सार्वजनिक सभा, इंडियन एसोसिएशन, मद्रास महाजन सभा, बॉम्बे रेज़िडेंसी एसोसिएशन और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्रमुख थे।
इन संगठनों का उद्देश्य भारतीयों को अपने मामलों में निर्णय लेने की स्वतंत्रता (संप्रभुता) दिलाना था।
1878 का आर्म्स एक्ट और वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट तथा 1883 का इल्बर्ट बिल विवाद ने ब्रिटिश शासन के वास्तविक रवैये को उजागर किया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885):
72 प्रतिनिधियों ने बम्बई में कांग्रेस की स्थापना की।
दादाभाई नौरोजी, फिरोज़शाह मेहता, बदरुद्दीन तैयब जी, डब्ल्यू. सी. बैनर्जी, सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी जैसे नेताओं ने नेतृत्व किया।
शुरुआती वर्षों में कांग्रेस “मध्यमार्गी” थी, जो सरकार और प्रशासन में भारतीयों के लिए अधिक जगह, विधान परिषदों का विस्तार और सिविल सेवा परीक्षाओं को भारत में भी आयोजित करने की माँग करती थी।
कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन के कारण हुई गरीबी और अकाल जैसे आर्थिक मुद्दों को भी उठाया।
“स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है” (1890 के दशक):
बाल गंगाधर तिलक, बिपिनचंद्र पाल और लाला लाजपत राय जैसे नेताओं ने कांग्रेस के नरमपंथी तरीकों की आलोचना की।
उन्होंने आत्मनिर्भरता, रचनात्मक कार्यों और स्वराज के लिए लड़ने पर जोर दिया।
तिलक का नारा था: “स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।”
बंगाल विभाजन (1905) और स्वदेशी आंदोलन:
लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया, जिसका मुख्य उद्देश्य बंगाली राजनेताओं के प्रभाव को कम करना और जनता को बांटना था।
इस विभाजन के विरोध में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ, जिसने ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार, स्वयं सहायता, राष्ट्रीय शिक्षा और भारतीय भाषा के उपयोग को बढ़ावा दिया।
मुस्लिम लीग का गठन (1906):
मुसलमान ज़मींदारों और नवाबों ने ढाका में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग का गठन किया।
लीग ने बंगाल विभाजन का समर्थन किया और मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचिका की माँग की, जिसे 1909 में सरकार ने मान लिया।
महात्मा गांधी का आगमन (1915):
गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और चंपारण, खेड़ा तथा अहमदाबाद के स्थानीय आंदोलनों में नेतृत्व किया।
उन्होंने अहिंसक सत्याग्रह के माध्यम से जननेता के रूप में उभरकर राष्ट्रीय आंदोलन को एक नई दिशा दी।
रॉलट सत्याग्रह (1919):
गांधीजी ने रॉलट एक्ट के खिलाफ़ देशव्यापी सत्याग्रह का आह्वान किया, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने और पुलिस को अधिक अधिकार देने वाला कानून था।
6 अप्रैल 1919 को अहिंसक विरोध दिवस मनाया गया।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919) इस दमनकारी कार्रवाई का हिस्सा था।
ख़िलाफ़त आंदोलन और असहयोग आंदोलन (1920-1922):
तुर्की के खलीफ़ा के साथ हुए सख्त व्यवहार के विरोध में ख़िलाफ़त आंदोलन शुरू हुआ।
गांधीजी ने ख़िलाफ़त और जलियाँवाला बाग अत्याचारों के विरोध में असहयोग आंदोलन का आह्वान किया।
विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल-कॉलेज छोड़े, वकीलों ने वकालत छोड़ी, उपाधियाँ वापस की गईं और विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई।
चौरी-चौरा की घटना (1922) के बाद गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया।
पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव (1929):
जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में 1929 में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित किया।
26 जनवरी 1930 को पूरे देश में “स्वतंत्रता दिवस” मनाया गया।
दांडी मार्च और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930):
गांधीजी ने नमक कानून तोड़ने के लिए दांडी मार्च किया।
उन्होंने साबरमती से दांडी तक पैदल यात्रा की और सार्वजनिक रूप से नमक बनाकर कानून का उल्लंघन किया।
इस आंदोलन में किसानों, आदिवासियों और महिलाओं ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942):
गांधीजी ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान “करो या मरो” का नारा देते हुए ब्रिटिशों को भारत छोड़ने की चेतावनी दी।
गांधीजी और अन्य नेताओं को जेल में डाल दिया गया, लेकिन आंदोलन फैलता गया।
यह ब्रिटिश राज को घुटने टेकने के लिए मजबूर करने वाला एक महत्वपूर्ण आंदोलन था।
स्वतंत्रता और विभाजन (1940 के दशक):
1940 में मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए “स्वतंत्र राज्यों” की माँग की।
1930 के दशक के आख़िर से लीग मुसलमानों और हिंदुओं को अलग-अलग राष्ट्र मानने लगी थी।
1946 के प्रांतीय चुनावों में मुस्लिम लीग को मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर भारी सफलता मिली।
कैबिनेट मिशन की विफलता के बाद मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त 1946 को “प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस” मनाया, जिससे हिंसा भड़क उठी।
मार्च 1947 तक उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, जिसके परिणामस्वरूप भारत का विभाजन और पाकिस्तान का निर्माण हुआ।
प्रमुख व्यक्तित्व:
दादाभाई नौरोजी, फिरोज़शाह मेहता, बदरुद्दीन तैयब जी (प्रारंभिक कांग्रेस नेता)
बाल गंगाधर तिलक, बिपिनचंद्र पाल, लाला लाजपत राय (आमूल परिवर्तनवादी)
महात्मा गांधी, मोहम्मद अली जिन्ना, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना आज़ाद, सरोजिनी नायडू, सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद।
प्रश्न और उत्तर (आसान हिंदी में)
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)
प्रश्न: राष्ट्रवाद का उदय किन दशकों में हुआ?
उत्तर: राष्ट्रवाद का उदय मुख्य रूप से 1870 और 1880 के दशकों में हुआ।प्रश्न: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब और कहाँ हुई?
उत्तर: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में बम्बई में हुई।प्रश्न: बाल गंगाधर तिलक का प्रसिद्ध नारा क्या था?
उत्तर: बाल गंगाधर तिलक का प्रसिद्ध नारा था, “स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा!”प्रश्न: बंगाल का विभाजन किस वायसराय ने किया था?
उत्तर: बंगाल का विभाजन वायसराय लॉर्ड कर्जन ने किया था।प्रश्न: गांधीजी ने रॉलट सत्याग्रह का आह्वान कब किया?
उत्तर: गांधीजी ने रॉलट सत्याग्रह का आह्वान 1919 में किया।प्रश्न: जलियाँवाला बाग हत्याकांड कब हुआ था?
उत्तर: जलियाँवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल 1919 को हुआ था।प्रश्न: चौरी-चौरा की घटना कब हुई थी?
उत्तर: चौरी-चौरा की घटना फरवरी 1922 में हुई थी।प्रश्न: पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव किस वर्ष पारित हुआ?
उत्तर: पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव 1929 में पारित हुआ।प्रश्न: दांडी मार्च किस कानून को तोड़ने के लिए किया गया था?
उत्तर: दांडी मार्च नमक कानून को तोड़ने के लिए किया गया था।प्रश्न: मुस्लिम लीग ने “प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस” कब मनाया?
उत्तर: मुस्लिम लीग ने “प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस” 16 अगस्त 1946 को मनाया।
लघु उत्तरीय प्रश्न (Medium Answer Questions)
प्रश्न: शुरुआती वर्षों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख उद्देश्य क्या थे?
उत्तर: शुरुआती वर्षों में कांग्रेस के प्रमुख उद्देश्य थे: सरकार और प्रशासन में भारतीयों को ज़्यादा जगह दिलाना, विधान परिषदों का विस्तार करना, सिविल सेवा परीक्षाओं को भारत में भी आयोजित करना, तथा ब्रिटिश शासन के कारण हुई गरीबी और अकाल जैसे आर्थिक मुद्दों को उठाना। वे अंग्रेज़ों से न्याय और स्वतंत्रता के आदर्शों का सम्मान करने की उम्मीद करते थे।प्रश्न: स्वदेशी आंदोलन क्या था और इसके मुख्य प्रभाव क्या थे?
उत्तर: स्वदेशी आंदोलन बंगाल विभाजन (1905) के विरोध में शुरू हुआ था। इसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन का विरोध करना, स्वयं सहायता, स्वदेशी उद्यमों, राष्ट्रीय शिक्षा और भारतीय भाषा के उपयोग को बढ़ावा देना था। इसने जनता को लामबंद किया, ब्रिटिश संस्थानों और वस्तुओं का बहिष्कार किया, और लोगों में राष्ट्रीय भावना को मज़बूत किया।प्रश्न: महात्मा गांधी के आगमन ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर: महात्मा गांधी 1915 में भारत लौटे और उन्होंने अहिंसा तथा सत्याग्रह के सिद्धांतों के आधार पर आंदोलन को एक नई दिशा दी। उन्होंने चंपारण, खेड़ा और अहमदाबाद जैसे स्थानीय आंदोलनों में सफलतापूर्वक नेतृत्व किया, जिससे वे एक जननेता के रूप में उभरे। उनके नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन अब केवल पढ़े-लिखे लोगों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि किसान, मज़दूर और आम जनता भी इसमें शामिल हो गए।प्रश्न: असहयोग आंदोलन के मुख्य कारण और परिणाम क्या थे?
उत्तर: असहयोग आंदोलन के मुख्य कारण थे जलियाँवाला बाग हत्याकांड, रॉलट एक्ट, और तुर्की के खलीफ़ा के साथ ब्रिटिशों का व्यवहार (ख़िलाफ़त मुद्दा)। इसके परिणामस्वरूप हज़ारों विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल-कॉलेज छोड़े, वकीलों ने वकालत छोड़ी, और विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। हालांकि चौरी-चौरा की घटना के बाद गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया, इसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ जनता के व्यापक असंतोष को प्रदर्शित किया।प्रश्न: भारत छोड़ो आंदोलन का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर: भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया था, जिसमें उन्होंने ब्रिटिशों से भारत छोड़ने की चेतावनी दी और “करो या मरो” का नारा दिया। गांधीजी और अन्य नेताओं को जेल में डाल दिया गया, लेकिन आंदोलन पूरे देश में फैल गया। किसानों, युवाओं और अन्य समूहों ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया। हालाँकि ब्रिटिशों ने इसका दमन किया, इस आंदोलन ने ब्रिटिश राज को कमजोर कर दिया और स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)
प्रश्न: 1870 के दशक से 1900 की शुरुआत तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की भूमिका और रणनीति का विश्लेषण करें।
उत्तर: 1870 के दशक से 1900 की शुरुआत तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ राष्ट्रीय आंदोलन की नींव रखी। शुरुआती वर्षों में कांग्रेस “मध्यमार्गी” थी। इसके नेता दादाभाई नौरोजी, फिरोज़शाह मेहता आदि थे। इनकी रणनीति निवेदन, याचिका और सभाओं के माध्यम से अपनी माँगें रखना थी। वे मानते थे कि ब्रिटिश न्याय और स्वतंत्रता के आदर्शों का सम्मान करते हैं और भारतीयों की जायज माँगें स्वीकार करेंगे। उन्होंने सरकार और प्रशासन में भारतीयों को अधिक जगह, विधान परिषदों का विस्तार और सिविल सेवा परीक्षाओं को भारत में भी आयोजित करने की माँग की। उन्होंने ब्रिटिश शासन के कारण हुई गरीबी और अकाल जैसे आर्थिक मुद्दों को भी उठाया।
हालांकि, 1890 के दशक तक बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने इन “निवेदन की राजनीति” की आलोचना की। उन्होंने आत्मनिर्भरता और स्वराज पर जोर दिया। उनका मानना था कि लोगों को अपनी ताकत पर भरोसा करना चाहिए और स्वराज के लिए लड़ना चाहिए। इस प्रकार, कांग्रेस के भीतर मध्यमार्गी और आमूल परिवर्तनवादी (गरम दल) विचारधाराएँ विकसित हुईं, जिसने आंदोलन को गति दी और उसकी रणनीति में बदलाव लाए।प्रश्न: महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय आंदोलन को जन आंदोलन में कैसे बदला? उनके नेतृत्व की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर: महात्मा गांधी के 1915 में भारत लौटने से राष्ट्रीय आंदोलन में एक नया अध्याय शुरू हुआ। उन्होंने इसे एक जन आंदोलन में बदल दिया, जिसमें समाज के हर वर्ग के लोग शामिल हुए। उनके नेतृत्व की मुख्य विशेषताएँ थीं:अहिंसक सत्याग्रह: गांधीजी ने सत्य और अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह का मार्ग अपनाया। उन्होंने लोगों को अन्याय के खिलाफ़ बिना हिंसा किए संघर्ष करना सिखाया।
स्थानीय आंदोलनों का नेतृत्व: उन्होंने चंपारण (किसान), खेड़ा (किसान) और अहमदाबाद (मिल मज़दूर) जैसे स्थानीय आंदोलनों में सफल नेतृत्व किया, जिससे उन्हें पूरे देश में पहचान मिली और आम जनता का विश्वास जीता।
आम आदमी से जुड़ाव: उन्होंने भारतीय पोशाक अपनाई और आम लोगों की भाषा में बात की, जिससे वे जनता से सीधे जुड़ सके। वे लोगों को अपना मसीहा लगने लगे जो उनकी गरीबी और मुसीबतों को दूर कर सकता था।
व्यापक भागीदारी: उनके आह्वान पर रॉलट सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलनों में किसान, आदिवासी, विद्यार्थी, महिलाएँ और औद्योगिक मज़दूरों ने बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया, जिससे आंदोलन का आधार व्यापक हुआ।
नैतिक बल पर ज़ोर: उन्होंने ब्रिटिश शासन के नैतिक आधार को चुनौती दी और भारतीयों में आत्मविश्वास पैदा किया कि वे अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ सकते हैं।
इन विशेषताओं के कारण गांधीजी ने राष्ट्रीय आंदोलन को एक शक्तिशाली जन आंदोलन में बदल दिया और भारत की स्वतंत्रता में निर्णायक भूमिका निभाई।
प्रश्न: भारत के विभाजन के मुख्य कारणों और परिणामों पर विस्तृत चर्चा करें।
उत्तर: भारत का विभाजन 1947 में एक जटिल प्रक्रिया का परिणाम था, जिसके कई कारण और दूरगामी परिणाम थे।
मुख्य कारण:मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की माँग: 1940 में मुस्लिम लीग ने “स्वतंत्र राज्यों” की माँग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया, जो बाद में पाकिस्तान की अवधारणा में विकसित हुआ। लीग का मानना था कि मुसलमान भारत में अल्पसंख्यक हैं और उन्हें लोकतांत्रिक संरचना में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा।
हिंदू-मुस्लिम तनाव: 1930 के दशक के आख़िरी सालों से हिंदुओं और मुसलमानों के कुछ संगठनों के बीच तनाव बढ़ा, जिसने लीग के “दो-राष्ट्र सिद्धांत” को बल दिया।
प्रांतीय चुनावों के परिणाम (1937 और 1946): 1937 के चुनावों में कांग्रेस की सफलता और लीग की मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर जीत ने लीग के इस डर को और मज़बूत किया कि भारत में उन्हें पर्याप्त शक्ति नहीं मिलेगी। 1946 के चुनावों में भी लीग को मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर भारी सफलता मिली, जिससे उसने अपनी माँग को और ज़ोरदार तरीके से रखा।
कांग्रेस की विफलता: कांग्रेस मुस्लिम जनता को अपने साथ लामबंद करने में विफल रही, जिससे मुस्लिम लीग को अपना जनाधार फैलाने का मौका मिला।
ब्रिटिश सरकार की भूमिका: कैबिनेट मिशन की विफलता के बाद, मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त 1946 को “प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस” मनाया, जिससे कलकत्ता और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में व्यापक हिंसा भड़क उठी। ब्रिटिश सरकार ने इस हिंसा को रोकने में असमर्थता दिखाई और अंततः विभाजन का निर्णय लिया।
परिणाम:बड़े पैमाने पर हिंसा और विस्थापन: विभाजन के परिणामस्वरूप व्यापक सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें लाखों लोग मारे गए। करोड़ों लोगों को अपने घर-बार छोड़कर नए बने देशों की सीमाओं के पार विस्थापित होना पड़ा, जिससे एक बड़ा मानवीय संकट उत्पन्न हुआ।
नए देशों का निर्माण: भारत और पाकिस्तान नामक दो स्वतंत्र राष्ट्रों का जन्म हुआ।
आर्थिक और सामाजिक उथल-पुथल: विभाजन ने दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया और सामाजिक ताने-बाने को भी तोड़ दिया। शरणार्थियों के पुनर्वास की चुनौती एक बड़ी समस्या थी।
दीर्घकालिक प्रभाव: विभाजन का घाव आज भी दोनों देशों के संबंधों और उनकी आंतरिक राजनीति पर गहरा प्रभाव डालता है।
सीबीएसई महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर (कक्षा 8, इतिहास)
अति लघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न: “संप्रभु” शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर: संप्रभु का अर्थ है बाहरी हस्तक्षेप के बिना स्वतंत्र रूप से कदम उठाने की क्षमता।प्रश्न: 1878 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के लिए कौन सा कानून पारित किया जिससे वे हथियार नहीं रख सकते थे?
उत्तर: आर्म्स एक्ट (शस्त्र अधिनियम)।प्रश्न: 1883 में इल्बर्ट बिल विवाद क्यों हुआ?
उत्तर: इल्बर्ट बिल भारतीय न्यायाधीशों को ब्रिटिश या यूरोपीय व्यक्तियों पर मुकदमे चलाने की अनुमति देता था, जिसका अंग्रेजों ने विरोध किया।प्रश्न: “केसरी” नामक मराठी अखबार का संपादन किसने किया?
उत्तर: बाल गंगाधर तिलक ने।प्रश्न: “नाइटहुड” क्या है?
उत्तर: ब्रिटिश राजा/रानी की ओर से किसी व्यक्ति की अप्रतिम व्यक्तिगत सफलताओं या जनसेवा के लिए दी जाने वाली उपाधि।
लघु उत्तरीय प्रश्न (3 अंक)
प्रश्न: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारंभिक नेताओं और उनके विचारों पर प्रकाश डालें।
उत्तर: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारंभिक नेता दादाभाई नौरोजी, फिरोज़शाह मेहता, बदरुद्दीन तैयब जी आदि थे। ये मुख्यतः बम्बई और कलकत्ता के शिक्षित पेशेवर थे। ये “मध्यमार्गी” कहलाते थे। उनका मानना था कि ब्रिटिश शासन न्यायपूर्ण है और भारतीयों की जायज माँगें मान लेगा। उन्होंने विधान परिषदों में भारतीयों की भागीदारी बढ़ाने, सिविल सेवा परीक्षाओं को भारत में भी आयोजित करने, और आर्थिक शोषण को रोकने की माँगें रखीं। वे सूचनाओं के प्रसार और जनमत निर्माण पर जोर देते थे, बजाय कि किसी सीधे संघर्ष के।प्रश्न: महात्मा गांधी के दांडी मार्च का क्या महत्व था?
उत्तर: दांडी मार्च (1930) महात्मा गांधी द्वारा नमक कानून तोड़ने के लिए किया गया एक ऐतिहासिक आंदोलन था। इसका महत्व इसलिए था क्योंकि:नमक हर भारतीय के भोजन का बुनियादी हिस्सा था और उस पर टैक्स वसूलना पाप था, जिससे यह आंदोलन अमीरों और गरीबों दोनों से जुड़ गया।
इसने स्वतंत्रता की व्यापक चाह को एक खास शिकायत से जोड़ा, जिससे बड़ी संख्या में लोग आंदोलित हुए।
गांधीजी ने स्वयं अपने अनुयायियों के साथ 240 किलोमीटर चलकर नमक बनाकर कानून का सार्वजनिक रूप से उल्लंघन किया, जिससे आम लोगों को प्रेरणा मिली और पूरे देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन फैल गया।
प्रश्न: भारत छोड़ो आंदोलन के बाद ब्रिटिश राज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: भारत छोड़ो आंदोलन (1942) ने ब्रिटिश राज को गंभीर रूप से हिला दिया। यद्यपि ब्रिटिशों ने आंदोलन का दमन करने के लिए बर्बर तरीके अपनाए, हजारों लोग मारे गए और 90,000 से अधिक गिरफ्तार हुए, फिर भी इस विद्रोह ने ब्रिटिश सरकार को यह अहसास करा दिया कि भारत में उनका शासन अब ज़्यादा समय तक नहीं चल सकता। आंदोलन ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय जनता अब स्वतंत्रता से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेगी और ब्रिटिश शासन को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (5 अंक)
प्रश्न: भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के विभिन्न कारकों की व्याख्या करें, जिन्होंने 1870 के दशक से राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित किया।
उत्तर: भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के कई कारक थे जिन्होंने 1870 के दशक से राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित किया:ब्रिटिश उपनिवेशवाद का शोषण: अंग्रेज़ों ने भारत के संसाधनों पर कब्ज़ा जमा लिया था और भारतीयों के जीवन पर नियंत्रण कर लिया था। आर्थिक शोषण, भारी लगान, अकाल और गरीबी ने जनता में असंतोष पैदा किया।
पश्चिमी शिक्षा और विचारों का प्रभाव: पश्चिमी शिक्षा के प्रसार से भारतीयों ने स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसे पश्चिमी विचारों को समझा, जिसने उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने को प्रेरित किया।
नए कानूनों और प्रशासकीय संस्थाओं का अन्याय: आर्म्स एक्ट (हथियार रखने पर प्रतिबंध), वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट (सरकार की आलोचना पर रोक) और इल्बर्ट बिल विवाद (भारतीय न्यायाधीशों को ब्रिटिशों पर मुकदमा चलाने का अधिकार न देना) जैसे कानूनों ने भारतीयों को ब्रिटिशों के वास्तविक नस्लवादी और भेदभावपूर्ण रवैये का पता चला।
राजनीतिक संगठनों का गठन: पूना सार्वजनिक सभा, इंडियन एसोसिएशन, मद्रास महाजन सभा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसे संगठनों ने भारतीयों को एक मंच प्रदान किया और राष्ट्रव्यापी चेतना जगाई।
संचार और प्रेस की भूमिका: अख़बारों, लेखों और भाषणों के माध्यम से ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण चरित्र को उजागर किया गया और जनमत तैयार किया गया।
सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन: राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे सुधारकों ने भारतीय समाज को एकजुट करने और उसमें आत्म-सम्मान जगाने का काम किया, जिसने राष्ट्रवाद की भावना को बल दिया।
इन सभी कारकों ने मिलकर भारतीयों में एक साझा पहचान और ब्रिटिश शासन से मुक्ति की इच्छा पैदा की, जिससे राष्ट्रीय आंदोलन का उदय हुआ।
प्रश्न: महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप में क्या बदलाव आए? उनके प्रमुख आंदोलनों का वर्णन करें।
उत्तर: महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप में महत्वपूर्ण बदलाव आए। उन्होंने इसे पढ़े-लिखे लोगों के दायरे से निकालकर एक व्यापक जन आंदोलन बना दिया। उनके नेतृत्व की प्रमुख विशेषताएँ अहिंसा, सत्याग्रह और जनभागीदारी थीं। उनके प्रमुख आंदोलन इस प्रकार थे:रॉलट सत्याग्रह (1919): रॉलट एक्ट के विरोध में गांधीजी ने देशव्यापी अहिंसक सत्याग्रह का आह्वान किया। इस आंदोलन ने शहरों में हड़तालों और जुलूसों के माध्यम से ब्रिटिश शासन का विरोध किया, हालाँकि जलियाँवाला बाग हत्याकांड जैसी दमनकारी घटनाओं के कारण इसे समाप्त करना पड़ा।
असहयोग आंदोलन (1920-1922): जलियाँवाला बाग अत्याचारों और ख़िलाफ़त मुद्दे के जवाब में गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया। इसमें सरकारी स्कूल-कॉलेजों, अदालतों, विधान मंडलों का बहिष्कार किया गया और विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। यह आंदोलन समाज के विभिन्न वर्गों, जैसे छात्रों, वकीलों, किसानों और आदिवासियों को साथ लाया। चौरी-चौरा की हिंसा के बाद गांधीजी ने इसे वापस ले लिया।
दांडी मार्च और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930): नमक कानून तोड़ने के लिए गांधीजी ने दांडी मार्च का आयोजन किया। यह आंदोलन इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने स्वतंत्रता की चाह को एक आम शिकायत (नमक पर कर) से जोड़ा। इस आंदोलन में बड़ी संख्या में महिलाओं, किसानों और आदिवासियों ने भाग लिया, जिससे ब्रिटिश शासन को चुनौती मिली।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942): द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, गांधीजी ने “करो या मरो” का नारा देते हुए ब्रिटिशों को भारत छोड़ने का आह्वान किया। यह आंदोलन एक स्वतःस्फूर्त जन विद्रोह बन गया, जिसमें बड़े पैमाने पर हिंसा और दमन के बावजूद लोगों ने अपनी सरकारें बना लीं। इस आंदोलन ने ब्रिटिश राज को निर्णायक रूप से कमज़ोर किया और उन्हें स्वतंत्रता देने के लिए मजबूर किया।
गांधीजी ने इन आंदोलनों के माध्यम से भारतीय जनता में आत्मविश्वास जगाया, उन्हें एकजुट किया, और ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ लड़ने के लिए एक अहिंसक और नैतिक मार्ग प्रदान किया।