भारतीय संविधान

भारतीय संविधान

भारतीय संविधान: मुख्य बिंदु और प्रश्नोत्तर

अध्याय 1: भारतीय संविधान

मुख्य बिंदु (सारांश):

  • संविधान क्या है? संविधान नियमों का एक समूह है, जिसे एक देश के सभी लोग अपने देश को चलाने की पद्धति के रूप में अपनाते हैं। यह समाज का मूलभूत स्वरूप तय करता है। आधुनिक देशों में यह सहमति आमतौर पर लिखित रूप में होती है।

  • संविधान की ज़रूरत क्यों पड़ती है?

    1. आदर्शों का सूत्रबद्ध करना: यह दस्तावेज़ उन आदर्शों को सूत्रबद्ध करता है जिनके आधार पर नागरिक अपने देश को अपनी इच्छा और सपनों के अनुसार रच सकते हैं। यह समाज के मूलभूत स्वरूप को बताता है।

    2. सत्ता के दुरुपयोग से बचाव: लोकतंत्र में नेता सत्ता का दुरुपयोग कर सकते हैं। संविधान ऐसे नियम तय करता है जिनसे राजनेताओं द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को रोका जा सके (जैसे मौलिक अधिकार)।

    3. बहुसंख्यक निरंकुशता पर अंकुश: यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी ताकतवर समूह (बहुसंख्यक) दूसरे (अल्पसंख्यक) पर अपनी ताकत का इस्तेमाल न करे। यह अंतर-सामुदायिक और अंतःसामुदायिक वर्चस्व दोनों पर प्रतिबंध लगाता है।

    4. स्वयं को बचाने के लिए: हम खुद को ऐसे फ़ैसलों से बचा सकें जो हमारे व्यापक हितों के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। यह देश की बुनियादी संरचना को उन्माद से बचाता है।

  • नेपाल का उदाहरण: नेपाल में पहले राजतंत्र था और 1990 का संविधान राजा को सर्वोच्च सत्ता देता था। लोकतंत्र की स्थापना के लिए लंबे संघर्ष के बाद, 2006 में राजतंत्र खत्म हुआ और 2015 में एक नया लोकतांत्रिक संविधान अपनाया गया, जो लोगों के आदर्शों को दर्शाता है।

  • भारतीय संविधान के मुख्य लक्षण:

    1. संघवाद (Federalism): देश में एक से ज़्यादा स्तर की सरकारें होती हैं – राज्य स्तर पर और केंद्र स्तर पर (जैसे पंचायती राज तीसरा स्तर)। सभी राज्यों को कुछ मुद्दों पर स्वायत्त अधिकार हैं, लेकिन राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर केंद्र सरकार के कानूनों को मानना पड़ता है।

    2. संसदीय शासन पद्धति: सरकार के सभी स्तरों पर प्रतिनिधियों का चुनाव लोग खुद करते हैं। भारत का संविधान सभी वयस्क नागरिकों को वोट डालने का अधिकार देता है।

    3. शक्तियों का बँटवारा: सरकार के तीन अंग हैं – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। ये शक्तियाँ एक-दूसरे से अलग होती हैं ताकि कोई भी शाखा सत्ता का दुरुपयोग न कर सके और तीनों अंगों के बीच संतुलन बना रहे।

    4. मौलिक अधिकार: इन्हें भारतीय संविधान की ‘अंतरात्मा’ कहा जाता है। ये नागरिकों को राज्य की मनमानी और निरंकुश इस्तेमाल से बचाते हैं। ये अल्पसंख्यकों के अधिकारों की भी रक्षा करते हैं। ये हर नागरिक को अपने अधिकारों के लिए दावा करने की स्थिति में रखते हैं।

      • समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार, संवैधानिक उपचार का अधिकार।

    5. धर्मनिरपेक्षता: धर्मनिरपेक्ष राज्य वह होता है जिसमें राज्य अधिकृत रूप से किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में बढ़ावा नहीं देता। इसका मतलब है कि राज्य का धर्म से कोई सीधा संबंध नहीं होता और सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार होता है।

महत्वपूर्ण CBSE प्रश्नोत्तर (आसान हिंदी में):

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions):

  1. प्रश्न: संविधान की ज़रूरत क्यों पड़ती है?
    उत्तर: संविधान की ज़रूरत इसलिए पड़ती है क्योंकि यह देश के आदर्शों को तय करता है, नेताओं द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को रोकता है, बहुसंख्यकों की निरंकुशता से अल्पसंख्यकों की रक्षा करता है और हमें खुद को ऐसे फ़ैसलों से बचाता है जो हमारे व्यापक हितों के लिए हानिकारक हो सकते हैं।

  2. प्रश्न: संघवाद से आप क्या समझते हैं?
    उत्तर: संघवाद का मतलब है कि देश में एक से ज़्यादा स्तर की सरकारें हों, जैसे भारत में केंद्र सरकार और राज्य सरकारें। इन दोनों को अपने-अपने कार्यक्षेत्र में कानून बनाने और फैसले लेने का अधिकार होता है।

  3. प्रश्न: भारतीय संविधान के किन्हीं दो मौलिक अधिकारों के नाम बताइए।
    उत्तर:

    1. समानता का अधिकार

    2. स्वतंत्रता का अधिकार

  4. प्रश्न: धर्मनिरपेक्ष राज्य का क्या अर्थ है?
    उत्तर: धर्मनिरपेक्ष राज्य वह होता है जिसमें राज्य का अपना कोई राजकीय धर्म नहीं होता और वह किसी भी धर्म को बढ़ावा नहीं देता। सभी धर्मों के नागरिकों को अपनी धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Medium Answer Type Questions):

  1. प्रश्न: नेपाल के संविधान में 1990 और 2015 के बीच क्या मुख्य अंतर था?
    उत्तर: 1990 के नेपाल के संविधान में शासन की सर्वोच्च सत्ता राजा के पास थी, जो एक राजतंत्र था। इसके विपरीत, 2015 का संविधान एक लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आधारित है, जहाँ शासन की कार्यकारी शक्तियाँ राजा के बजाय मंत्रिपरिषद में निहित हैं। यह अंतर दर्शाता है कि नेपाल राजतंत्र से लोकतंत्र की ओर बढ़ा।

  2. प्रश्न: शक्तियों के बँटवारे का क्या महत्व है?
    उत्तर: शक्तियों का बँटवारा (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि सरकार का कोई भी एक अंग बहुत ज़्यादा ताकतवर न हो जाए और सत्ता का दुरुपयोग न कर सके। यह हर अंग को दूसरे पर अंकुश रखने का मौका देता है, जिससे सरकार के तीनों अंगों के बीच सत्ता का संतुलन बना रहता है।

  3. प्रश्न: मौलिक अधिकारों को भारतीय संविधान की ‘अंतरात्मा’ क्यों कहा जाता है?
    उत्तर: मौलिक अधिकार नागरिकों को राज्य की मनमानी और निरंकुश सत्ता से बचाते हैं। ये अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि सभी नागरिकों को अपने अधिकारों के लिए दावा करने का मौका मिले। ये अधिकार स्वतंत्र भारत में न्याय और समानता के आदर्शों को स्थापित करने के लिए आवश्यक थे, इसीलिए इन्हें संविधान की ‘अंतरात्मा’ कहा जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions):

  1. प्रश्न: किसी लोकतांत्रिक देश को संविधान की ज़रूरत क्यों पड़ती है? विस्तार से समझाइए।
    उत्तर: किसी लोकतांत्रिक देश को संविधान की ज़रूरत कई महत्वपूर्ण कारणों से पड़ती है:

    • आदर्शों का निर्धारण: संविधान उन आदर्शों और सिद्धांतों को तय करता है जिन पर देश चलेगा। यह बताता है कि समाज का मूलभूत स्वरूप कैसा होगा और नागरिक अपने देश को कैसे देखना चाहते हैं।

    • सत्ता के दुरुपयोग पर रोक: लोकतंत्र में, निर्वाचित नेता सत्ता का दुरुपयोग कर सकते हैं। संविधान ऐसे नियम और कानून (जैसे मौलिक अधिकार) प्रदान करता है जो सरकार की शक्तियों को सीमित करते हैं और नागरिकों को अन्याय से बचाते हैं।

    • बहुसंख्यक निरंकुशता से बचाव: समाज में बहुसंख्यक समूह अपनी शक्ति का इस्तेमाल अल्पसंख्यक समूहों को दबाने के लिए कर सकता है। संविधान ऐसे प्रावधान करता है जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी समुदायों को समान व्यवहार मिले।

    • आत्म-सुरक्षा: कई बार लोग भावनात्मक होकर या किसी खास मुद्दे पर बहुत तीखे ढंग से सोचने लगते हैं, जिससे वे ऐसे फ़ैसले ले सकते हैं जो उनके दीर्घकालिक हितों के खिलाफ़ हों। संविधान देश की बुनियादी संरचना को ऐसे अदूरदर्शी फ़ैसलों से बचाता है और नागरिकों के अधिकारों व स्वतंत्रता की रक्षा करता है।

    • राजनीतिक व्यवस्था का निर्धारण: संविधान देश की राजनीतिक व्यवस्था, सरकार के विभिन्न स्तरों (संघवाद), और सरकार के अंगों (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) की शक्तियों और ज़िम्मेदारियों को तय करता है।

  2. प्रश्न: भारतीय संविधान के मुख्य लक्षणों का वर्णन कीजिए।
    उत्तर: भारतीय संविधान के मुख्य लक्षण देश की लोकतांत्रिक और समावेशी प्रकृति को दर्शाते हैं:

    • संघवाद: भारत में एक से ज़्यादा स्तर की सरकारें हैं – केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और पंचायती राज (स्थानीय सरकार)। संविधान इन सभी स्तरों की सरकारों की शक्तियों और ज़िम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है, जिससे क्षेत्रीय स्वायत्तता बनी रहे और राष्ट्रीय एकता भी कायम रहे।

    • संसदीय शासन पद्धति: भारतीय नागरिक अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं जो सरकार का संचालन करते हैं। संविधान सभी वयस्क नागरिकों को वोट डालने का अधिकार देता है, जिससे हर व्यक्ति को सरकार के चुनाव में भाग लेने का मौका मिलता है। ये प्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं।

    • शक्तियों का बँटवारा: सरकार की शक्तियों को तीन अंगों में विभाजित किया गया है: विधायिका (कानून बनाने वाली), कार्यपालिका (कानून लागू करने वाली) और न्यायपालिका (न्याय करने वाली)। यह बँटवारा सुनिश्चित करता है कि कोई भी एक अंग असीमित शक्ति का प्रयोग न करे और तीनों अंग एक-दूसरे पर नियंत्रण व संतुलन बनाए रखें।

    • मौलिक अधिकार: ये संविधान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और इन्हें ‘संविधान की अंतरात्मा’ कहा जाता है। ये नागरिकों को राज्य और अन्य व्यक्तियों की मनमानी से बचाते हैं। इनमें समानता, स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध, धार्मिक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक व शैक्षणिक और संवैधानिक उपचार का अधिकार शामिल हैं। ये अल्पसंख्यकों के अधिकारों की भी रक्षा करते हैं।

    • धर्मनिरपेक्षता: भारतीय राज्य आधिकारिक तौर पर किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में बढ़ावा नहीं देता है। सभी धर्मों को समान सम्मान दिया जाता है और नागरिकों को अपनी पसंद के किसी भी धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता है। राज्य धर्म के मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है यदि वह सामाजिक सुधार या अधिकारों के हनन से जुड़ा हो।

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