न्यायपालिका

अध्याय 4: न्यायपालिका – महत्वपूर्ण बिंदु और प्रश्नोत्तर

यह अध्याय भारत की न्यायपालिका की संरचना, भूमिका और महत्व को समझाता है।

मुख्य बिंदु:

  • न्यायपालिका की भूमिका:

    • विवादों का निपटारा (नागरिकों, सरकार, राज्यों के बीच)।

    • न्यायिक समीक्षा (संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन करने वाले कानूनों को रद्द करना)।

    • कानून की रक्षा और मौलिक अधिकारों का क्रियान्वयन (नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा)।

  • स्वतंत्र न्यायपालिका का महत्व:

    • यह सरकार की अन्य शाखाओं (विधायिका और कार्यपालिका) के दखल के बिना स्वतंत्र रूप से कार्य करती है।

    • न्यायाधीशों को आसानी से नहीं हटाया जा सकता।

    • यह शक्तियों के बँटवारे का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है।

  • अदालतों की संरचना:

    • तीन स्तर: निचली अदालतें (जिला/अधीनस्थ न्यायालय), उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय।

    • एकीकृत न्यायिक व्यवस्था: ऊपरी अदालतों के फैसले नीचे की सभी अदालतों को मानने होते हैं।

    • अपील की व्यवस्था: निचली अदालत के फैसले से असंतुष्ट व्यक्ति ऊपरी अदालत में अपील कर सकता है।

  • फौजदारी और दीवानी कानून:

    • फौजदारी: अपराधों से संबंधित (चोरी, हत्या, दहेज उत्पीड़न)। पुलिस FIR दर्ज करती है, जाँच करती है, और अदालत में केस चलता है। दोषी पाए जाने पर जेल या जुर्माना।

    • दीवानी: व्यक्ति के अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित (जमीन की बिक्री, किराया, तलाक)। प्रभावित पक्ष न्यायालय में याचिका दायर करता है। अदालत राहत की व्यवस्था करती है।

  • क्या हर व्यक्ति अदालत की शरण में जा सकता है?

    • सिद्धांततः सभी नागरिक न्याय माँग सकते हैं, लेकिन व्यवहार में गरीबों के लिए यह मुश्किल होता है क्योंकि कानूनी प्रक्रिया महँगी और समय लेने वाली होती है।

    • जनहित याचिका (PIL): 1980 के दशक में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विकसित की गई, ताकि अधिक से अधिक लोग न्याय तक पहुँच सकें। कोई भी व्यक्ति या संस्था दूसरों के अधिकारों के उल्लंघन के लिए PIL दायर कर सकती है।

  • न्याय में देरी: मुकदमों की सुनवाई में कई साल लग सकते हैं, जिसे “इंसाफ में देरी यानी इंसाफ का कत्ल” कहा जाता है।


प्रश्नोत्तर (आसान हिंदी में)

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions):

  1. न्यायपालिका के मुख्य काम क्या हैं?

    • उत्तर: न्यायपालिका के मुख्य काम हैं विवादों को सुलझाना, कानूनों की समीक्षा करना, और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना।

  2. ‘स्वतंत्र न्यायपालिका’ का क्या मतलब है?

    • उत्तर: स्वतंत्र न्यायपालिका का मतलब है कि सरकार की कोई भी शाखा (विधायिका या कार्यपालिका) न्यायपालिका के काम में दखल नहीं दे सकती और न्यायाधीश बिना किसी दबाव के फैसले लेते हैं।

  3. भारत में अदालतों के कितने स्तर हैं? उनके नाम बताएँ।

    • उत्तर: भारत में अदालतों के तीन स्तर हैं: निचली अदालतें (जिला अदालतें), उच्च न्यायालय, और सर्वोच्च न्यायालय।

  4. जनहित याचिका (PIL) क्या है?

    • उत्तर: जनहित याचिका एक ऐसा तरीका है जिससे कोई भी व्यक्ति या संस्था दूसरों (खासकर गरीबों और वंचितों) के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए अदालत में याचिका दायर कर सकती है, ताकि न्याय मिल सके।

  5. फौजदारी और दीवानी कानून में मुख्य अंतर क्या है?

    • उत्तर: फौजदारी कानून अपराधों (जैसे चोरी, हत्या) से संबंधित होते हैं, जबकि दीवानी कानून व्यक्ति के अधिकारों के उल्लंघन (जैसे संपत्ति विवाद, किराया विवाद) से संबंधित होते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Medium Answer Questions):

  1. लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका क्यों जरूरी है?

    • उत्तर: स्वतंत्र न्यायपालिका लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि यह सरकार की शक्तियों पर अंकुश लगाती है और उनके दुरुपयोग को रोकती है। यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है और यह सुनिश्चित करती है कि कानून का शासन लागू हो, जिससे सभी लोगों को समान न्याय मिल सके। अगर न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं होगी तो नेताओं के दबाव में फैसले हो सकते हैं और आम जनता को न्याय नहीं मिल पाएगा।

  2. अपील की व्यवस्था को एक उदाहरण से समझाएँ।

    • उत्तर: अपील की व्यवस्था का मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति निचली अदालत के फैसले से संतुष्ट नहीं है, तो वह उस फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में जा सकता है। उदाहरण के लिए, “राज्य बनाम लक्ष्मण कुमार” मामले में, निचली अदालत ने लक्ष्मण कुमार को दोषी ठहराया था। वे इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय गए, जिसने उन्हें बरी कर दिया। फिर, महिला संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की, जिसने लक्ष्मण कुमार को दोबारा दोषी ठहराया। यह दर्शाता है कि एक मामले को न्याय के लिए विभिन्न अदालती स्तरों पर ले जाया जा सकता है।

  3. जनहित याचिका ने आम लोगों के लिए न्याय तक पहुँच को कैसे आसान बनाया है?

    • उत्तर: जनहित याचिका (PIL) ने 1980 के दशक में न्याय तक पहुँच को आसान बनाया। इससे पहले, कानूनी प्रक्रिया महंगी और जटिल थी, जिससे गरीब लोग न्याय नहीं ले पाते थे। PIL के माध्यम से, कोई भी व्यक्ति या संगठन दूसरों (जो स्वयं याचिका दायर नहीं कर सकते) की ओर से अदालत जा सकता है। इससे बंधुआ मजदूरों की मुक्ति, कैदियों की रिहाई और बच्चों को मिड-डे मील जैसे मुद्दों पर न्याय मिला है, जिससे न्याय व्यवस्था अधिक समावेशी बनी है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions):

  1. “इंसाफ में देरी यानी इंसाफ का कत्ल” – इस कथन का क्या अर्थ है और यह भारत की न्याय व्यवस्था में कैसे दिखाई देता है? इसे दूर करने के लिए क्या किया जा सकता है?

    • उत्तर: “इंसाफ में देरी यानी इंसाफ का कत्ल” का अर्थ है कि यदि किसी व्यक्ति को समय पर न्याय नहीं मिलता, तो वह न्याय के न मिलने के समान है। भारत की न्याय व्यवस्था में यह समस्या अक्सर दिखाई देती है, जहाँ मुकदमों की सुनवाई में कई साल लग जाते हैं। इसके कुछ कारण हैं:

      • मामलों का भारी बोझ: अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित मामले हैं।

      • न्यायाधीशों की कमी: स्वीकृत पदों की तुलना में न्यायाधीशों की संख्या कम है।

      • जटिल प्रक्रिया: कानूनी प्रक्रियाएं अक्सर जटिल और लंबी होती हैं।

      • आर्थिक बोझ: लंबे समय तक चलने वाले मुकदमों में खर्च भी बढ़ जाता है।
        यह देरी पीड़ित को और अधिक कष्ट पहुँचाती है और न्याय पर से लोगों का विश्वास भी कम करती है।

    • इसे दूर करने के लिए:

      • न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाना: अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति करके मामलों को तेजी से निपटाया जा सकता है।

      • फास्ट ट्रैक कोर्ट: विशेष प्रकार के मामलों के लिए त्वरित अदालतें स्थापित करना।

      • कानूनी प्रक्रियाओं का सरलीकरण: प्रक्रियाओं को आसान और अधिक कुशल बनाना।

      • वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR): मध्यस्थता और सुलह जैसे तरीकों को बढ़ावा देना।

      • तकनीक का उपयोग: सुनवाई को डिजिटल बनाना और ई-कोर्ट जैसी पहल को बढ़ावा देना।

  2. भारतीय न्यायपालिका नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है? ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मुकदमे के संदर्भ में समझाएँ।

    • उत्तर: भारतीय न्यायपालिका नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में एक प्रहरी की तरह काम करती है। संविधान ने मौलिक अधिकारों की गारंटी दी है, और यदि किसी नागरिक को लगता है कि उसके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, तो वह सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय में जा सकता है। न्यायपालिका संविधान की व्याख्या करती है और सरकार को उन कानूनों को लागू करने से रोक सकती है जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।

    • ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मुकदमे: इस मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया कि “आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है” (संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत)। अदालत ने कहा कि केवल जैविक अस्तित्व बनाए रखना जीवन का अधिकार नहीं है, बल्कि गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए आजीविका का अधिकार भी आवश्यक है। इस फैसले के माध्यम से, अदालत ने झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के बेदखली के खिलाफ उनके जीवन और आजीविका के अधिकार की रक्षा की, यह बताते हुए कि बेदखली उनके रोजगार को खत्म कर देगी और उन्हें जीवन से वंचित कर देगी। यह उदाहरण दिखाता है कि कैसे न्यायपालिका मौलिक अधिकारों की व्याख्या करके उन्हें व्यापक बनाती है और आम नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है।


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